शादी के बाद सुहागरात को अपने दामाद और बेटी के बीच सोती है मां, पूरी रात दोनों को सिखाती है खुश रखने के तरीके
शादी-विवाह और सुहागरात को लेकर हर धर्म संप्रदाय की अपनी अलग-अलग तरह की परंपराये होती हैं। आपने पूरी दुनिया में शादी से जुड़ी बहुत सी रस्मों के बारे में सुना है, जिसमें हर एक रिवाज का बड़ा महत्व माना जाता है। इसके साथ ही हर एक परंपरा के पीछे कोई न कोई कहनी जुड़ी होती है।
शादी के बाद नवविवाहित जोड़े को अपनी पहली रात यानि की सुहागरात का काफी इंतजार होता है लेकिन इस जगह पर सुहागरात को लेकर बहुत ही हैरान कर देने वाला रिवाज है। आज हम आपको एक ऐसी रस्म के बारे में बताने जा रहे है, जिसे पढ़ आप हक्के-बक्के रह जाएंगे।
यह रिवाज बेहद ही अनोखा है क्योंकि यहां दुल्हन की मां अपनी बेटी और दामाद की सुहागरात पर उनके साथ रहती है और सोती है। हमारे यहां शादी में निभाई जाने वाली हर रस्म को समाज में बड़ा महत्व दिया जाता है, जिसमे से एक रस्म सुहागरात की भी निभाई जाती है।
फिल्मों और टीवी नाटकों में सुहागरात को जिताना रोमांटिक दिखाया जाता है। असल में ऐसा कुछ नहीं होता है। बल्कि रियल लाइफ में कपल इस रात को बाते करते और एक-दूसरे के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। वहीं, बता दें कि हर देश में इस रस्म से जुड़ी अलग-अलग रिवाज हैं।
जिसमें से आज हम अफ्रीका के कुछ इलकों में निभाई जाने वाली बेहद ही अनोखी परंपरा के बारे में बात कर रहे हैं, जिसमें सुहागरात पर दुल्हन की मां अपने बेटी और दामाद के साथ रहती है।
सदियों से चल रही परंपरा
अफ्रीका के कुछ इलकों में सदियों से यह परंपरा निभाई जा रही है। इस मान्यता के मुताबिक, दूल्हा-दुल्हन की पहली रात पर लड़की की मां दोनों के साथ रहती है और वह उनके कमरे में साथ सोती भी है। इसके साथ ही अगर मां नहीं होती है तो घर की कोई बुजुर्ग महिला उनके साथ पूरी रात साथ रहती है।
लड़की की मां कमरे में बेटी-दामाद के रहती है साथ
यहां के लोगों का कहना है कि यह बुजुर्ग महिला या लड़की की मां दूल्हा-दुल्हन को शादी के खुशहाल जीवन के बारे में सलाह देती है और उनको सारी चीजें समझाती है। इसके साथ ही वह उनको बताती है कि उस रात क्या करना है।
सुहागरात के अगले दिन मां घरवालों को बताती है सारी बात
सुहागरात के अगले दिन कपल के कमरे में मौजूद बुजुर्ग महिला या मां घरवालों को इस बात के बारे में पुष्टि करती है कि रात को सबकुछ ठीक रहा। यहां इसस रस्म को शर्म से न देखकर बल्कि परंपरा से जुड़ा गया है, जिसको आज भी निभाया जा रहा है।