home page

शराब पीने वाले भी नही जानते खंभा, अद्धा और पौवा का सही गणित, जाने लीटर में क्यों नही होती है शराब कि बोतल

दारू जिसे अंग्रेजी में अल्कोहल कहा जाता है। विश्वभर में विभिन्न संस्कृतियों और समारोहों में एक महत्वपूर्ण पेय के रूप में स्थान रखता है। भारत में दारू न केवल एक सामाजिक पेय है बल्कि यह विभिन्न भावनाओं और...
 | 
Why Wine Bottle Not In Litre
   

दारू जिसे अंग्रेजी में अल्कोहल कहा जाता है। विश्वभर में विभिन्न संस्कृतियों और समारोहों में एक महत्वपूर्ण पेय के रूप में स्थान रखता है। भारत में दारू न केवल एक सामाजिक पेय है बल्कि यह विभिन्न भावनाओं और परिस्थितियों का साथी भी बन जाता है। आइए जानें इसकी मापने की अनोखी पद्धति के बारे में जिसे भारत में लंबे समय से अपनाया जा रहा है।

हमारा Whatsapp ग्रूप जॉइन करें Join Now

दारू की बोतलों की यह अनूठी माप पद्धति भारतीय बाजार की एक विशेषता है जो न केवल पारंपरिक है बल्कि व्यावहारिक भी है। यह पद्धति न केवल दारू के सेवन को सुविधाजनक बनाती है बल्कि इसके पीछे की सोच भी गहरी है, जिसे समय के साथ अपनाया गया है और जो आज भी भारतीय समाज में दृढ़ता से स्थापित है।

ये भी पढ़िए :- भारतीय दुकानदार को देखकर अंग्रेज ने शुरू कर दिया आवाज लगाना, बंदे की हिंदी सुनकर तो नही रुकेगी हंसी

दारू की बोतलों की माप: एक अद्वितीय परंपरा

दारू की बोतलों को मापने का तरीका भारत में विशेष रूप से अनूठा है। जहां अधिकांश तरल पदार्थों को लीटर में मापा जाता है, वहीं दारू की बोतलें पारंपरिक रूप से खंभा (750ml), अद्धा (375ml) और पौवा (180ml) के नाम से जानी जाती हैं।

इस पैमाने का अपनाया जाना भारतीय बाजार में दारू की खरीदारी को एक विशेष पहचान देता है और उपभोक्ताओं के लिए खरीदना सरल बनाता है।

ब्रिटिश प्रभाव और मापन पद्धति

भारत में दारू की मापन पद्धति पर ब्रिटिश शासन का गहरा प्रभाव रहा है। ब्रिटिश समय से ही यह पद्धति भारतीय बाजारों में प्रचलित हो गई थी और आज भी इसका पालन किया जाता है।

इस पद्धति की खासियत यह है कि यह पैग के हिसाब से बोतलों की माप को निर्धारित करती है। एक बड़े पैग का मान 60ml होता है और इसे ध्यान में रखकर ही बोतल के आकार को तय किया जाता है।

ये भी पढ़िए :- हरियाणा के इस शहर से निकलेंगे 6 नैशनल हाइवे, आने वाले समय में इस शहर की चमक उठेगी किस्मत

सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव

दारू की बोतलों की इस विशेष माप पद्धति का एक बड़ा प्रभाव भारतीय समाज पर पड़ता है। छोटी बोतलें जैसे कि पौवा और अद्धा अधिक सुलभ होती हैं और इससे दारू का सेवन और भी आम हो जाता है।

यह संस्कृति के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी उपभोक्ता की जेब पर कम बोझ डालता है। क्योंकि छोटी बोतलें कम कीमत में उपलब्ध होती हैं।