भारत के इस क़स्बे में आलू प्याज़ के रेट में मिलता है असली काजू, एक या दो किलो नही बल्कि बोरी भर भरकर ले जाते है लोग
हमारी सेहत के लिए ड्राई फ्रूट कितने उपयोगी हैं ये सभी जानते हैं. ड्राई फ्रूट खाना-खिलाना आम आदमी के बजट के बाहर है. आमतौर पर लोग काजू खाने और खरीदने से पहले कई बार सोचते हैं. वजह साफ है काजू के ऊंचे दाम. ड्राई फ्रूट में अकसर काजू काफी महंगा है. ऐसे में कोई कहे कि काजू की कीमत आलू-प्याज से भी कम है तो शायद ही आपको भरोसा हो पर ये बिलकुल सच है.
यहां पर आलू प्याज के दाम में मिलते हैं काजू
आसपास के इलाकों में और दिल्ली में काजू का दाम 800 रुपए प्रति किलो के करीब है. लेकिन दिल्ली से करीब 12 सौ किलोमीटर दूर आप अपने बजट में काजू खरीद सकते हैं. या यूं कहें कि आलू प्याज के दाम में काजू खरीद सकते हैं.
लेकिन यह सच है कि झारखंड में काजू बेहद ही सस्ते हैं झारखंड के जामताड़ा जिले में काजू 10 से 20 रुपये प्रति किलो बिकते हैं. बता दें कि जामताड़ा के नाला में करीब 49 एकड़ इलाके में काजू के बागान हैं.
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पीछे छिपा है कारण
जब से लोगों के ये बात पता चली है कि यहां आलू-प्याज के दाम पर काजू मिलता है तब से यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है. वैसे हैरानी तो आपको भी हो रही होगी कि काजू इतना सस्ता कैसे हो सकता है..? दरअसल, इसके पीछे एक कारण छिपा है और जब तक आप उसे नहीं जान लेंगे, तब तक आपको काजू के सस्ता होने का कारण नहीं पता चलेगा.
क्यों है इतना सस्ता काजू?
दरअसल, झारखंड के जामताड़ा के नाला इलाके में 49 एकड़ में काजू के बहुत से बागान हैं. यहां पर इस बागान में काम करने वाले बच्चे और महिलाएं काजू को बेहद सस्ते दामों में बेच देते हैं. बता दें कि यह बागान जामताड़ा ब्लॉक मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर है. काजू की फसल में फायदा होने के चलते इलाके के काफी लोगों का रुझान इस ओर हो रहा है.
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ऐसे शुरू हुई थी यहां पर काजू की खेती
दिलचस्प बात तो यह है कि जामताड़ा में काजू की इतनी बड़ी फसल मात्र चंद दिनों की मेहनत के बाद ही शुरू हुई है. जामताड़ा के पूर्व उपायुक्त कृपानंद झा को काजू खाना बहुत पसंद था. यही कारण था कि वो चाहते थे कि जामताड़ा में ही काजू के बागान बनाया जाए ताकि ताजे और सस्ती काजू खाने को मिल सकें. कृपानंद कृषि के वैज्ञानिकों से जामताड़ा की जमीन के बारे में पता किया और काजू की बागवानी शुरू कर दी.
पैदा होते हैं हर साल हजारों क्विंटल काजू
कुछ ही सालों में यहां काजू की खेती तो खूब अच्छी होने लगी पर इस विशाल काजू बागान में सुरक्षा और निगरानी के कोई खास इंतजाम न होने की वजह से काफी फसल या तो चोरी हो जाती या बागान के मजदूर औने-पौने दाम में बेचने लगे.
कृपानंद के यहां से जाने के बाद निमाई चन्द्र को घोष एंड कंपनी को तीन लाख में तीन साल के लिए बागान की जिम्मेदारी सौप दी. अनुमान के मुताबिक यहां हर साल हजारों क्विंटल काजू होते हैं और देखरेख न हो पाने के कारण यहां से गुजरने वाले काजू तोड़ ले जाते हैं.
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काजू की बागवानी में जुटे लोगों ने कई बार राज्य सरकार से फसल की सुरक्षा की गुहार लगाई, पर खास ध्यान नहीं दिया गया. अगर आप भी इतने सस्ते काजू खरीदना चाहते हैं तो पहुंच जाइए काजूओं के इस शहर में और भर पेटी अपने और रिश्तेदारों के लिए खरीदकर ले आइए.