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जीवन में आने वाली समस्याओं का अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन आचार्य चाणक्य एक महापुरुष थे उन्होंने जीवन से संबंधित कई पहलुओं के बारे में विस्तार से वर्णन अपने ग्रंथ नीति शास्त्र में किया है। नीति शास्त्र में वर्णित नीतियां आज भी प्रासंगिक हैं। इन नीतियों को अपनाकर लोग सुखद जीवन बिताने के साथ ही तरक्की हासिल कर सकते हैं।
कहा जाता है कि चाणक्य की नीतियों को अपनाना मुश्किल होता है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बुद्धिमान व्यक्तियों के बारे में भी बात की है। एक श्लोक में आचार्य बताते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति को किन परिस्थितियों में कष्टों का सामना करना पड़ता है। आप भी जानें क्या कहती है आज की चाणक्य नीति-
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मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।
इस श्लोक का अर्थ है कि मूर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट स्त्री का पालन-पोषण करने, धन नष्ट होने और दुख व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़ता है।
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मूर्ख को ज्ञान देने का कोई लाभ नहीं
चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने का कोई लाभ नहीं होता है। इससे केवल सज्जन और बुद्धिमान लोग हानि उठाते हैं। उदाहरण के लिए बया और बंदर की कहानी आपको याद होगी। मूर्ख बंदर को घर बनाने की सलाह देकर बया को अपने घोंसले से हाथ धोना पड़ता है। इसी प्रकार दुष्ट और कुलटा स्त्री का पालन-पोषण करने से सज्जन और बुद्धिमान व्यक्तियों को दुख ही प्राप्त होता है।
संक्रामक रोगों से ग्रस्त
चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अनेक रोगों से पीड़ित हैं और जिनका धन नष्ट हो चुका है, ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध रखना बुद्धिमान लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है। अनेक रोगों से पीड़ित का तात्पर्य संक्रामक रोग से है। बहुत से लोग संक्रामक रोगों से ग्रस्त होते हैं, उनकी संगति से स्वयं को रोगी का अंदेशा रहता है।
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दिवालिया हो चुके लोग
जिन लोगों का धन नष्ट हो चुका है या दिवालिया हो चुके हैं, उन पर विश्वास करना मुश्किल होता है। ऐसे लोगों का दुख से उबरना मुश्किल होता है। जो लोग वास्तव में दुखी हैं और उबरना चाहते हैं उसका सहयोग करना चाहिए। क्योंकि दुखी से तो स्वार्थी ही बचता है।