गांव के लड़कों के पास नही थे पैसे तो बांस और ईंटों से बना दिया जुगाड़ू जिम, लड़कों का जुगाड़ू दिमाग़ देख आप भी रह जाएँगे हैरान
गकोरोना के दौर में रोज-रोज कोरोना केस की बढ़ती संख्या देखने के साथ-साथ कुछ कहानियां हिम्मत देने वाली भी होती हैं। लोग तो काम कर रहे हैं। लोग तो मिसालें स्थापित कर ही रहे हैं। दो अलग-अलग कहानियां हैं। पहली ये कि एक गांव में बगीचे में देसी जिम खोला गया। वहां गांव के लोग आज फौज की तैयारी करने के लिए आते हैं। दूसरी ये एक कि टीचर स्कूटर पर बच्चों को घर-घर जाकर पढ़ा रही हैं, वो अपने स्कूटर से ही मोबाइल लाइब्रेरी चला रही हैं।
गकोरोना के दौर में रोज-रोज कोरोना केस की बढ़ती संख्या देखने के साथ-साथ कुछ कहानियां हिम्मत देने वाली भी होती हैं। लोग तो काम कर रहे हैं। लोग तो मिसालें स्थापित कर ही रहे हैं। दो अलग-अलग कहानियां हैं। पहली ये कि एक गांव में बगीचे में देसी जिम खोला गया। वहां गांव के लोग आज फौज की तैयारी करने के लिए आते हैं। दूसरी ये एक कि टीचर स्कूटर पर बच्चों को घर-घर जाकर पढ़ा रही हैं, वो अपने स्कूटर से ही मोबाइल लाइब्रेरी चला रही हैं।
सतना जिले का है मामला
गोब्रावखुर्द गांव सतना जिले में पड़ता है। यहां के रहने वाले नृपेंद्र सिंह ने देसी जिम शुरू किया है। सब्जी और फलों के बगीचे में ही उन्होंने देसी जिम बनाया। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होने ये जिम इसलिए बनाया है ताकि इलाके के नौजवान फिट रहें। आर्मी की तैयारी कर सकें। ये जिम ईंटों और बांस से बनाया गया है।
बिलकुल फ्री है एक्सरसाइज करना
इस जिम को लॉकडाउन के दौर में ही शुरू किया गया है। नृपेंद्र कहते हैं कि ये जिम युवा पीढ़ी को एक ऊर्जा दे रहा है। यहां आकर वो आर्मी में जाने के लिए तैयारी कर सकते हैं। बता दें कि ये जिम बिलकुल फ्री है। कोई भी आओ और वर्कआउट करो। 70 से 100 लोग रोज आते हैं।
स्कूटर पर चलाती है मोबाइल लाइब्रेरी
वहीं दूसरी कहानी है उषा जी की। सिंगरौली जिले के वैधान की रहने वाली उषा जी बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने स्कूटर से मोबाइल लाइब्रेरी चलाती है। वो गांव-गांव जाती है और शिक्षा के प्रति बच्चों में अलख जगाती हैं। बता दें कि वो एक सरकारी टीचर होने के बावजूद भी ये काम करती हैं।
चलता-फिरता पुस्तकालय
उषा जी बताती हैं कि राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा ‘हमारा घर हमारा विद्यालय’ प्रोग्राम 18 अगस्त से 24 सितंबर तक चलाया गया। उषा कहती हैं कि उसी दौरान उन्हें ये आइडिया आया। उन्होंने अपने स्कूटर से ही मोबाइल लाइब्रेरी चलाने की ठानी। यहां तक कि कई मोहल्लों में जाकर उन्होंने बच्चों की क्लासेज भी ली।