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मुगल इतिहास का सबसे बदनसीब बादशाह जो अंग्रेजो की पेन्शन से करता था गुजारा, मौत के डर से अंग्रेजो के सामने शर्त रखकर किया सरेंडर

कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में… यह उस मुगल बादशाह की लिखी पक्तियां हैं जिसके पुरखों ने भारत में कई दशकों तक शासन किया।
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last mughal emperor bahadur shah zafar
   

कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में… यह उस मुगल बादशाह की लिखी पक्तियां हैं जिसके पुरखों ने भारत में कई दशकों तक शासन किया। अपने अंतिम दौर में मुगलों के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर ने अपने हालातों को कुछ ऐसे बयां किया।

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मुगल शासक अपने अंतिम दौर तक रौब और रुतबे के लिए जाने जाते थे, लेकिन बहादुर शाह जफर का हाल इसके उलट था। बादशाह जफर की आंखें अंदर की ओर धंस गई थी। बाल समय से पहले सफेद हो चले थे।

अंग्रेजों की पेंशन पर जी रहे थे और हालात बिना सत्ता वाले शासक जैसी थी। जफर शाह ज्यादातर समय इस खौफ में रहते थे कि न जाने कब अंग्रेज उन्हें पकड़कर मार दें। एक ऐसा दौर भी आया जब मुगल सल्तनत अपने अंतिम दौर में थी।

क्योंकि देश में अंग्रेजी फौज का दायरा तेजी से बढ़ रहा था। 16 सितंबर, 1857, वो तारीख जब मुगल सल्तनत के आखिरी बादशाह को गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेजों ने दिल्ली को चारों तरफ से घेर लिया था।

दिल्ली से भागने की योजना बनाई

धीरे-धीरे देश में अंग्रेजों की तानाशाही बढ़ रही थी। अंग्रेजों की पेंशन पर जी रहे बादशाह ने अपनी सत्ता बचाने और उनके खिलाफ ही बिगुल फूंकने का निर्णय लिया। अंग्रेजों के खिलाफ भारत को एकजुट करने के लिए बादशाह ने विद्रोहियों के समूह का नेतृत्व किया।

इस बगावत को रोकने को लिए अंग्रेजों ने सबसे पहले बादशाह पर शिकंजा कसने की योजना बनाई और दिल्ली को घेरना शुरू किया। उस दिन की कहानी ‘द सीज ऑफ देल्ही’ के लेखक अमरपाल सिंह ने अपनी किताब में लिखी।

वो लिखते हैं, 16 सितंबर को अंग्रेजों की फौज ने बादशाह की रियासत को घेर लिया था। बादशाह को यह जानकारी मिल गई थी, लेकिन वो सरेंडर करने के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें इस बात का डर था कि अगर अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तो उनकी हत्या निश्चित है।

इस हार के साथ उन्होंने अंग्रेजों के इस जाल से निकलने की योजना बनाई। 19 सितंबर को वो अपने कुछ वफादार सैनिकों के साथ महल छोड़ने में कामयाब हो गए। भागने के बाद उन्होंने हुमायूं के मकबरे को अपना ठिकाना बनाया, लेकिन अंग्रेजों को इसकी जानकारी हो गई।

ऐसे खत्म हो गई मुगल सल्तनत

अंग्रेज अपनी फौज के साथ हुमायूं के मकबरे पहुंच गए। बाहर खड़े होकर अंग्रेजी फौज के कैप्टन विलियम हॉडसन जफर को पकड़ने की रणनीति बनाने लगे, तभी जफर के सैनिक बाहर आए तो कहा, अगर अंग्रेज बादशाह का जीवन बख्श दें तो वो खुशी-खुशी सरेंडर कर देंगे।

यह बात सुनकर कैप्टन चौंक गया क्योंकि ऐसे किसी वादे की जानकारी उसे नहीं थी। हॉडसन का कहना था जब अंग्रेजों का विरोध करने वाले हर विद्रोही को सजा दी जा रही है और फांसी पर लटकाया जा रहा है तो भला बादशाह को राहत क्यों दी जाए?

अमरपाल लिखते हैं, बादशाह व्रिदोहियों के नेता थे लेकिन काफी बुजुर्ग हो चुके थे। अगर उनकी मौत होती तो इस खबर के कारण देश के कई हिस्सों में क्रांतिकारियों को संभालना अंग्रेजों के लिए मुश्किल हो जाता। इसलिए तय किया गया कि अगर बादशाह सरेंडर कर देते हैं तो जीवन बख्श दिया जाएगा।

बादशाह को इसकी जानकारी मिलने के बाद मकबरे से पहली पालकी बेगम जीनत महल की निकली और दूसरी पालकी में बादशाह थे। हॉडसन को देखने के बाद बादशाह ने हथियार डाल दिए। वो एक ऐतिहासिक पल था जब भारत में मुगल सल्तनत का अंत हुआ।

बादशाह की बदनसीबी का हाल

अंग्रेजी हुकूमत ने बादशाह को दिल्ली से दूर करने में ही अपनी भलाई समझी। इसलिए वो बादशाह को बर्मा ले गए। यहां 7 नवंबर 1862 को आखिरी मुगल शासक ने अंतिम सांस लीं। उन्हें बर्मा में ही दफना दिया गया ताकि किसी को कब्र की जानकारी न मिल पाए। जफर अंतिम दौर में खुद को बदनसीब बादशाह मानते थे।

जिन मुगलों की मौत के बाद उनकी याद में बड़े-बडे़े मकबरे बनाए जाते थे, उनके अंतिम बादशाह की मौत के बाद 132 साल तक किसी को उनकी कब्र की जानकारी तक नहीं मिल पाई। 1991 में खुदाई के दौरान कब्र की जानकारी मिली और मिले अवशेषों के आधार पर बादशाह के नाम की मुहर लगी।