इस नस्ल की भैंस को पालने वालों की रहती है पूरी मौज, हर रोज देती है 15 लीटर दूध
सुरती भैंस भारत के गुजरात राज्य के खेड़ा और बड़ौदा जिलों की मूल निवासी है. इसे विभिन्न क्षेत्रों में चरोटारी, दक्कनी, गुजराती, नडियाडी और तालाबारा जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसकी पहचान भूरे और हल्के काले रंग के शरीर और बैरल के आकार के शरीर संरचना से की जाती है. यह नस्ल डेयरी उत्पादकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है.
सुरती भैंस की शारीरिक विशेषताएं
सुरती भैंस का औसत कद 130 से 135 सेमी तक होता है, और इनकी लंबाई 150 से 155 सेमी तक होती है. पूंछ की लंबाई 85 से 90 सेमी तक होती है. नर भैंस का वजन 400 से 450 किलोग्राम और मादा भैंस का वजन 390 से 430 किलोग्राम तक होता है. इसकी शारीरिक संरचना और मजबूत कद इसे दूध उत्पादन के लिए आदर्श बनाती है.
दूध उत्पादन क्षमता में अग्रणी
सुरती भैंस डेयरी उद्योग (dairy farming in India) के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. यह प्रतिदिन लगभग 10 से 15 लीटर दूध देती है, जबकि एक औसत दुग्ध उत्पादन चक्र में यह लगभग 1900 से 2000 लीटर दूध दे सकती है. सुरती भैंस का दूध पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिससे यह बाजार में अधिक मांग वाली नस्ल बन जाती है.
पालन-पोषण में आसानी
सुरती भैंस का पालन-पोषण अन्य नस्लों की तुलना में आसान (easy to rear buffalo breed) है. इसका पहला चरण 35 से 45 महीने का होता है, जो इसे जल्दी उत्पादन शुरू करने वाली नस्ल बनाता है. इसके साथ ही, यह नस्ल बेहतर प्रतिरोध क्षमता के कारण रोगों से लड़ने में सक्षम होती है.
सुरती भैंस की बाजार कीमत
सुरती भैंस की कीमत बाजार में 40,000 रुपये से 50,000 रुपये तक होती है. यह कीमत इसके दूध उत्पादन क्षमता और स्वास्थ्य लाभों के कारण उचित मानी जाती है. डेयरी उद्योग (dairy farming business) से जुड़े किसान इसे एक लाभदायक निवेश मानते हैं.
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डेयरी उद्योग में सुरती भैंस का महत्व
सुरती भैंस डेयरी उत्पादन में न केवल अधिक मात्रा में दूध देती है, बल्कि यह पोषण से भरपूर दूध प्रदान करती है. इसका दूध प्रोटीन और वसा की मात्रा में बेहतर होता है, जिससे यह दूध उत्पाद जैसे घी, मक्खन और पनीर बनाने के लिए उपयुक्त है.
पर्यावरण के अनुकूल नस्ल
यह नस्ल अपने कम चारे की आवश्यकता (low fodder requirement buffalo) और उच्च उत्पादकता के कारण पर्यावरण के अनुकूल मानी जाती है. यह नस्ल विभिन्न प्रकार की जलवायु में आसानी से अनुकूलित हो जाती है, जो इसे देश के विभिन्न हिस्सों में पालन के लिए उपयुक्त बनाती है.