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प्लास्टिक की तरह दिखने वाले दवाइयों के कैप्सूल किस चीज़ से बने होते है, जाने पेट के अंदर जाने पर कहाँ जाते है कैप्सूल के कवर

आप या आपके परिवार का कोई सदस्‍य जब बीमार होता है तो आप डॉक्‍टर के पास जाते हैं. डॉक्‍टर बीमारी डायग्‍नोस करने के बाद टैबलेट्स, कैप्‍सूल्‍स, इंजेक्‍शन या सीरिप या सभी चीजों के कॉम्‍बीनेशन बनाकर ट्रीटमेंट प्रिस्‍क्राइब करते हैं.
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आप या आपके परिवार का कोई सदस्‍य जब बीमार होता है तो आप डॉक्‍टर के पास जाते हैं. डॉक्‍टर बीमारी डायग्‍नोस करने के बाद टैबलेट्स, कैप्‍सूल्‍स, इंजेक्‍शन या सीरिप या सभी चीजों के कॉम्‍बीनेशन बनाकर ट्रीटमेंट प्रिस्‍क्राइब करते हैं. इनमें कई कैप्‍सूल्‍स को देखकर लगता है कि उनका कवर प्‍लास्टिक से बना है.

कुछ को देखकर लगता है कि उनके कवर सॉफ्ट रबर से बने हैं. क्‍या आपके दिमाग में भी कभी ये सवाल आया है कि कैप्‍सूल के कवर किस चीज के बने होते हैं? कभी सोचा है कि इस कवर का शरीर में जाकर क्‍या होता है? अगर आपके दिमाग में ये सवाल आए हैं तो हम आपको इनका जवाब दे रहे हैं.

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कुछ साल पहले लोकसभा सदस्‍य और बीजेपी नेता मेनका गांधी ने कहा था कि कैप्‍सूल के कवर से कुछ समुदायों के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है. इस दौरान उन्‍होंने ये भी कहा था कि कैप्‍सूल के कवर पेड-पौधों की छाल से बनाए जाने चाहिए.

तो सबसे पहले यही जानते हैं कि कैप्‍सूल के कवर आखिर ऐसी किस चीज से बने होते हैं, जिनको खाने से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं? क्‍या ये कवर बायोडिग्रेडेबल प्‍लास्टिक से नहीं बने होते हैं?

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किस चीज से बनाया जाता है कैप्‍सूल कवर

दवा के तौर पर इस्‍तेमाल होने वाले कैप्‍सूल का कवर बायोडिग्रेडेबल प्‍लास्टिक से नहीं बना होता है. ये कवर दो तरह के होते हैं. पहला हार्ड शेल्‍ड और दूसरा सॉफ्ट शेल्‍ड. दोनों ही तरह के कैप्‍सूल कवर्स को बायोडिग्रेडेबल मैटेरियल से ही बनाए जाता है.

कैप्‍सूल के दोनों तरह के कवर जानवरों या पेड़-पौधों के प्रोटीन जैसे लिक्विड सॉल्‍यूशंस से बनाए जाते हैं. जिन कैप्सूल्‍स के कवर जानवरों के प्रोटीन से बनाए जाते हैं, उनकी सामग्री जिलेटिन कहलाती है. इसे मुर्गा, मछली, सुअर और गाय व उसकी प्रजाति के बाकी जानवरों की हड्डियों तथा त्‍वचा को उबालकर निकाला जाता है.

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कहां मिलता है कैप्‍सूल कवर का सेल्‍यूलोज

कुछ कैप्सूल्‍स के कवर पौधों से मिलने वाले प्रोटीन से बनाया जाता है. ये प्रोटीन पौधों की छाल से निकाला जाता है. कैप्‍सूल के कवर बनाने के लिए इस प्रोटीन को सेल्‍यूलोज प्रजाति के पेड़ों का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, जिलेटिन कोलेजन से बनता है. यह रेशेदार पदार्थ जैसे जानवरों की हड्डियों, उपास्थि और कंडरा में पाया जाता है.

जिलेटिन का इस्तेमाल जेली बनाने में भी किया जाता है. कई हेल्थ रिसर्च में बताया गया है कि ज्यादातर फार्मा कंपनियां पशुओं के उत्पादों से बने जिलेटिन कवर वाले कैप्सूल बेचती हैं. इसीलिए एनिमल एक्टिविस्‍ट मेनका गांधी ने पेड़-पौधों की छाल से मिले सेल्‍यूलोज के कवर का इस्‍तेमाल करने का सुझाव दिया था.

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शरीर में जाकर क्‍या होता है कवर का

जैसा कि अब आप जानते हें कि कैप्‍सूल के कवर जिलेटिन और सेल्‍यूलोज से बने होते हैं. आप ये भी जानते हैं कि ये जिलेटिन और सेल्‍यूलोज जानवरों और पेड़-पौधों के प्रोटीन से बनता है. साफ है कि जब हम कैप्‍सूल खाते हैं तो उसका कवर शरीर में जाकर घुल जाता है और दवाई अपना काम शुरू कर देती है.

कवर से मिला प्रोटीन हमारे शरीर को पोषण देता है. वहीं, अतिरिक्‍त प्रोटीन शरीर से बाहर निकल जाता है. इससे शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है.

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खास मकसद से दो रंग के होते हैं कैप्‍सूल

आजकल कैप्सूल बनाने में जिलेटिन और सैल्‍यूलोज के कवर का ही इस्तेमाल होता है. इस कवर में दवा भरी जाती है. क्‍या आपने कभी सोचा है कि कैप्‍सूल के कवर दो अलग रंगों के क्‍यों होते हैं? इसका कारण कैप्‍सूल्‍स को खूबसूरत बनाना नहीं होता है.

इनमें कैप्सूल का एक हिस्‍सा कैप और दूसरा हिस्‍सा कंटेनर की तरह काम करता है. कैप्सूल के कंटेनर वाले हिस्‍से में दवाई भरी होती है. वहीं, कैप वाले हिस्‍से से कैप्‍सूल को बंद किया जाता है. कैप और कंटेनर का रंग अलग इसलिए रखा जाता है ताकि कैप्सूल बनाते समय कर्मचारियों से गलती न हो.