18 साल की उम्र से पहले शादी करवाने पर मिलेगी सजा, प्रॉपर्टी में बेटी को मिलेगा समान अधिकार

महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार, यूसीसी की समान नागरिक संहिता का सबसे बड़ा लाभ होगा। जानकारों का कहना है कि यूसीसी के नागरिक कानूनों में समानता का सबसे बड़ा लाभ सभी वर्गों की महिलाओं...
 

महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार, यूसीसी की समान नागरिक संहिता का सबसे बड़ा लाभ होगा। जानकारों का कहना है कि यूसीसी के नागरिक कानूनों में समानता का सबसे बड़ा लाभ सभी वर्गों की महिलाओं को मिलेगा क्योंकि पर्सनल लॉ में महिलाओं के साथ अधिकारों को लेकर भेदभाव स्पष्ट रूप से देखा जाता है।

महिला अधिकारों का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि विधेयक के प्रावधानों का कोई स्थायी असर नहीं होगा।यूसीसी सहित कई विषयों पर पीआईएल दायर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि देश में नागरिक अधिकारों में भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक समान नागरिक संहिता चाहिए।

महिलाएं अभी समुदाय आधारित भेदभाव से सबसे अधिक प्रभावित हैं। कई धर्मों में महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले होती है। महिलाओं को भी तलाक लेने में पुरुषों के समान अधिकार नहीं हैं। वर्तमान नागरिक कानून भी महिलाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार में भेदभाव करते हैं।

उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी बिल प्रस्तुत किया, जो महिलाओं को सशक्त करने में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। उपाध्याय ने बताया कि यूसीसी बाल विवाह और बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करते हुए विवाहों को समझौते के बजाय स्थायित्व देगा।

यह कानून बच्चे को जैविक संतान के रूप में पहचानता है, इसलिए उसे अपने अभिभावकों से समान अधिकार मिलेंगे। उपाध्याय कहते हैं कि किसी भी धर्म में पैदा होने वाला लड़का हो या लड़की नौ महीने तक मां के गर्भ में रहने वाली मां की प्रसव पीड़ा एक समान होती है।

इससे स्पष्ट होता है कि भगवान, खुदा या जीसस नहीं, बल्कि इंसान ने महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव किया है। इसलिए धर्म को कुरीतियों और कुप्रथाओं से जोड़ना बिल्कुल गलत है। एक प्रगतिशील समाज बनाने के लिए समान नागरिक संहिता बहुत महत्वपूर्ण है।

सामाजिक सुरक्षा में सुधार होगा

पति या पत्नी के साथ रहते हुए दूसरी शादी या बहु विवाह करना गैरकानूनी है। विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं को इससे सामाजिक सुरक्षा मिलेगी, वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह करने की अनुमति है, इससे मुस्लिम महिलाएं सामाजिक रूप से मजबूत होंगी।

महिलाओं को भी तलाक का समान आधार मिलेगा। नया कानून भी लिव इन रिलेशनशिप को नियमित करता है। इनसे पैदा होने वाले बच्चे के अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे, और वयस्क उम्र के बाद आपसी सहमति से साथ रहने वाले अविवाहित जोड़े भी सुरक्षित रहेंगे।

संपत्ति में बेटी का बेटे के समान अधिकार

यूसीसी के तहत पिता की संपत्ति में बेटियों का समान हक सुनिश्चित करता है। विभिन्न धर्मों में पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार को लेकर अलग-अलग व्यवस्थाएं थीं। यूएससीआई इसमें एकरूपता लाएगा। पिता की मौत के बाद उनकी संपत्ति बेटे, बेटी और मां के बीच बराबर बाँटी जाएगी।

हाईकोर्ट के अधिवक्ता संदीप कोठारी ने कहा कि सभी धर्मों की बेटियों को यूसीसी के प्रावधानों से सबसे अधिक लाभ मिलेगा। वे अधिक अधिकार प्राप्त करेंगे। मुसलमान बेटियां निश्चित रूप से लाभ उठाएंगी।

अठारह वर्ष से पहले शादी पर होगी सजा

यदि अभिभावक झूठ बोलकर 18 वर्ष से पहले लड़की की शादी कराता है, तो उसे तीन महीने की सजा होगी। विधेयक इसकी अनुमति देता है। वास्तव में, मुस्लिम समुदाय के अलावा सभी समुदायों में शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष है।

मुस्लिम समुदाय में लड़की की शादी करने की सबसे कम आयु वह है जब उसका मासिक धर्म शुरू होता है। यूसीसी, दूसरी ओर, गोद लेने और विवाह संबंधित वादों के अलावा अन्य व्यक्तियों से संबंधित भरण पोषण को नहीं मानता है।

वसीयत के समान नियम

वसीयत को लेकर नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए समान प्रावधान हैं। अब भी वसीयत के अलग-अलग नियम मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों में हैं। यूसीसी ने अब सभी धर्मों के अलग-अलग वसीयत नियमों को एक समान बनाया है।

उत्तराखंड के लिए यह एक गौरवशाली अवसर है। यूएससीआई प्रत्येक धर्म और वर्ग की मातृशक्ति को समानता और समरसता का अधिकार देगा। यह नागरिक संहिता कई इस्लामिक देशों में पहले से ही लागू है। यूसीसी संविधान से प्राप्त अधिकारों के तहत बनाया गया है। भाजपा ने दशकों से ऐसे मुद्दों को उठाया है। सभी को धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है।