शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकते है पति पत्नी, क्या सच में इतने साल से पहले नही ले सकते तलाक

विवाह एक सामाजिक संस्था है जो दो व्यक्तियों को न केवल वैवाहिक बंधन में बांधती है बल्कि उनके परिवारों को भी जोड़ती है। हालांकि कभी-कभी संबंधों में आने वाली दिक्कतें इतनी बढ़ जाती हैं कि तलाक ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।
 

विवाह एक सामाजिक संस्था है जो दो व्यक्तियों को न केवल वैवाहिक बंधन में बांधती है बल्कि उनके परिवारों को भी जोड़ती है। हालांकि कभी-कभी संबंधों में आने वाली दिक्कतें इतनी बढ़ जाती हैं कि तलाक ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। भारतीय संदर्भ में तलाक लेने की प्रक्रिया और उसकी समय सीमा को समझना जरूरी है जो कि तलाक के प्रकार और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

तलाक के लिए समय सीमा और कानूनी प्रावधान

भारतीय कानून के अनुसार, जब दोनों पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें तलाक के लिए कम से कम एक वर्ष तक साथ रहना अनिवार्य होता है। इस एक वर्ष की अवधि को 'कूलिंग पीरियड' भी कहा जाता है जो संबंधों में सुधार की संभावना को देखते हुए दी जाती है। इस दौरान अगर पति-पत्नी अपने फैसले पर पुनर्विचार कर लेते हैं तो वे साथ रह सकते हैं।

एकतरफा तलाक की स्थिति

अगर तलाक की मांग एक पक्ष द्वारा की जाती है तो इसे 'कंटेस्टेड डाइवोर्स' कहा जाता है। इस स्थिति में कोई निश्चित समय सीमा नहीं होती है और तलाक की अर्जी कभी भी दायर की जा सकती है। हालांकि इस प्रक्रिया में कोर्ट को यह साबित करना होता है कि संबंधों में सुधार की कोई संभावना नहीं है।

कोर्ट की भूमिका और अपवाद स्थिति

तलाक की प्रक्रिया में कोर्ट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपसी सहमति से तलाक के मामले में भी कोर्ट सामान्यत: छह महीने का 'रिफ्लेक्शन पीरियड' देता है जिसमें दोनों पक्षों को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का अवसर मिलता है। कुछ अपवादिक स्थितियों में जैसे कि अत्यधिक मानसिक या शारीरिक क्रूरता, कोर्ट इस समय सीमा को छोटा कर सकता है और तलाक को जल्दी मंजूरी दे सकता है।