तलाक मिलने के बाद उसी पार्टनर के साथ दोबारा कर सकते है शादी ? जाने क्या कहता है कानून

तलाक आपसी सहमति न बन पाने या अन्य कारणों से जब साथ रहना मुश्किल हो जाता है। तब दो लोग कानूनी रूप से अलग हो जाते हैं। यह प्रक्रिया भारतीय कानून के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रियाओं के माध्यम से संपन्न होती है।
 

तलाक आपसी सहमति न बन पाने या अन्य कारणों से जब साथ रहना मुश्किल हो जाता है। तब दो लोग कानूनी रूप से अलग हो जाते हैं। यह प्रक्रिया भारतीय कानून के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रियाओं के माध्यम से संपन्न होती है। जिसमें वकील के माध्यम से तलाक की अर्जी कोर्ट में दायर की जाती है और फिर कोर्ट इस पर सुनवाई करता है।

तलाक के बाद भी दोबारा एक साथ आने का विकल्प खुला रहता है। यदि दोनों पार्टनर सामंजस्य बनाने में सफल होते हैं और दोबारा विवाह की इच्छा रखते हैं, तो हिंदू मैरिज एक्ट उन्हें इसकी पूर्ण अनुमति प्रदान करता है। यह व्यक्तियों को अपनी गलतियों से सीखने और अपने रिश्ते को नई दिशा देने का मौका देता है।

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फिर से एक होने की दिशा में

अक्सर यह देखा गया है कि तलाक के बाद भी कई जोड़े अपने रिश्ते में सुधार लाने की दिशा में काम करते हैं और कभी-कभी दोबारा साथ आने का निर्णय लेते हैं। यह एक ऐसी संभावना है जिसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत स्वीकार्यता प्राप्त है।

हिंदू मैरिज एक्ट के प्रावधान

1955 में लागू हुए हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार हिंदुओं को एक विवाह की इजाजत है और यदि वे दूसरी शादी करना चाहते हैं, तो उन्हें पहले पार्टनर से तलाक लेना आवश्यक होता है।

अगर तलाक के बाद दोनों पार्टनर फिर से साथ आना चाहते हैं और दोबारा विवाह करना चाहते हैं, तो हिंदू मैरिज एक्ट इसकी अनुमति देता है। बशर्ते कि इस बीच में दोनों में से किसी ने किसी अन्य से विवाह न किया हो।

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वैवाहिक पुनर्मिलन की सामाजिक स्वीकृति

भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है और तलाक के बाद पुनः विवाह को लेकर कुछ सामाजिक विरोध भी देखने को मिल सकता है। हालांकि हिंदू मैरिज एक्ट में ऐसी कोई वैधानिक रोक-टोक नहीं है।

जो दोनों के बीच फिर से विवाह करने के निर्णय को अवैध ठहराती हो। यदि दोनों साथी स्वेच्छा से और समझदारी से दोबारा साथ आने का निर्णय लेते हैं, तो यह कानूनी और सामाजिक रूप से स्वीकार्य है।