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आचार्य चाणक्य किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनकी नीतियां और ज्ञान हमारे सफलता के मार्ग को सरल बनाते हैं। जीवन में आने वाली तमाम बाधाओं का सामना करने के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। नीति शास्त्र के दूसरे अध्याय के एक श्लोक में आचार्य बताते हैं कि संतान, पत्नी, पिता व मित्र केवल रिश्ते नहीं होते हैं।
केवल फेरे लेने से भर से कोई स्त्री पत्नी नहीं बन जाती है। मां के गर्भ से जन्म लेने भर से कोई संतान नहीं होती और मित्र कहने भर से कोई मित्र नहीं बन जाता है। कुछ खास गुणों के जरिए इन रिश्तों की असल पहचान होती है। आप भी जान लें आज की चाणक्य नीति-
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ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः।
तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या यत्र निर्वृतिः।।
चाणक्य कहते हैं कि पुत्र उन्हें ही कहा जा सकता है जो पिता के भक्त होते हैं। पिता भी वही हैं जो पुत्रों का पालन-पोषण करते हैं। इसी प्रकार मित्र भी वही है जिस पर विश्वास किया जा सकता है और पत्नी भी वही है जिससे सुख की प्राप्ति होती है।
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संतान पिता की आज्ञा का पालन नहीं करती
चाणक्य कहते हैं कि वहीं गृहस्थ सुखी है, जिसकी संतान उसके वश में है और उसकी आज्ञा का पालन करती है। अगर संतान पिता की आज्ञा का पालन नहीं करती तो घर में क्लेश और दुख पैदा होता है।
पिता का भी कर्तव्य
चाणक्य के अनुसार पिता का भी कर्तव्य है कि वह अपनी संतान का पालन-पोषण भली प्रकार से करे। जिसने अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया हो, उसे पुत्र से भी भक्ति की आशा नहीं करनी चाहिए।
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ऐसी पत्नी किस काम की
इसी प्रकार मित्र के विषय में चाणक्य का मत है ऐसे व्यक्ति को मित्र कैसे कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता और ऐसी पत्नी किस काम की, जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो और हमेशा क्लेश करके घर में अशांति फैलाती हो।