हरियाणा के इन 7 जिलों के किसानों को नही मिलेगा सरकारी योजना का लाभ, ये है असली वजह

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जो किसानों के लिए आपदा के समय एक सहारा बनने का वादा करती थी। आज खुद एक विकट स्थिति में फंसती नजर आ रही है। यह योजना 2016 में शुरू की गई थी।
 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जो किसानों के लिए आपदा के समय एक सहारा बनने का वादा करती थी। आज खुद एक विकट स्थिति में फंसती नजर आ रही है। यह योजना 2016 में शुरू की गई थी। लेकिन अब करनाल समेत हरियाणा के सात जिले इस योजना के लाभ से वंचित रह गए हैं।

क्योंकि कोई भी बीमा कंपनी यहां किसानों के फसलों का बीमा करने को तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का मूल उद्देश्य किसानों को सुरक्षा प्रदान करना था। लेकिन जब बीमा कंपनियां इसे लागू करने से कतराने लगें, तो सरकार को नई रणनीति के साथ आगे आना होगा।

ये भी पढ़िए :- गाड़ी के टायर में नाइट्रोजन भरवाने से क्या होते है फायदे, बहुत कम लोगों को पता होती है ये खास जानकारी

यह समय है कि सरकार अधिक सक्रिय रूप से किसानों की सहायता करे और उन्हें न केवल आर्थिक नुकसान से बचाए। बल्कि उनके भविष्य की सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक उपाय भी प्रदान करे।

करनाल के किसानों की बढ़ती चिंता

करनाल के 79 किसानों को पिछले वर्ष छह लाख रुपये का मुआवजा मिला था। जबकि इस वर्ष वे बीमा की सुविधा से वंचित रह गए। बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि ने हाल ही में करनाल समेत कई जिलों की 12 हजार एकड़ फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। इससे किसानों की मुश्किलें और बढ़ गईं हैं क्योंकि इस बार उन्हें फसल बीमा योजना से कोई मदद नहीं मिल पाई है।

बीमा कंपनियों का योजना से किनारा

यह समस्या सिर्फ करनाल तक सीमित नहीं है। अंबाला, सोनीपत, हिसार, जींद, महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम जैसे जिले भी इस योजना से बाहर हो गए हैं क्योंकि किसी भी निजी बीमा कंपनी ने यहां फसल बीमा के लिए बोली नहीं लगाई।

डा. वजीर सिंह, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक के अनुसार इस वर्ष बीमा कंपनियों को उचित बिड न मिलने के कारण उन्होंने योजना से हाथ खींच लिए हैं।

ये भी पढ़िए :- सुनसान आइलैंड जहां चारों तरफ बर्फ के बीच बनी हुई है अनोखी तिजोरी, कयामत आ जाएगी तो भी बचाएगी धरती

सरकारी नीति और किसानों की मांग

करनाल के किसान मनजीत ने सुझाव दिया कि निजी कंपनियों की जगह सरकार को खुद फसलों का बीमा संभालना चाहिए। उनका कहना है कि फसलों की बर्बादी का जोखिम किसानों को अकेले उठाने के लिए मजबूर करता है और अक्सर इसकी वजह से उनकी आर्थिक हालत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इसलिए सरकारी हस्तक्षेप और समर्थन की मांग की जा रही है।