कभी सोचा है कि असल में क्या होती है चकबंदी, जाने इसका किसानों पर क्या पड़ता है असर
भारत को अक्सर 'गांवों का देश' कहा जाता है जहाँ आज भी देश की बड़ी जनसंख्या गांवों में निवास करती है और उनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। जनसंख्या वृद्धि और पारिवारिक बंटवारे के कारण खेती की जमीन विभाजित होती जा रही है जिससे खेतों का आकार सिकुड़ता जा रहा है। ऐसे में चकबंदी एक महत्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करती है।
चकबंदी न केवल खेती की जमीन के समेकन का एक माध्यम है बल्कि यह कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति की दिशा में भी एक कदम है। इससे न सिर्फ खेती की उत्पादकता में वृद्धि होगी बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। आज के युग में चकबंदी खेती के क्षेत्र में एक अहम भूमिका निभा रही है और भविष्य में इसका महत्व और भी बढ़ेगा।
चकबंदी
चकबंदी खेती लायक जमीन को एक ही जगह मुहैया कराने की प्रक्रिया है जिससे किसान अधिक कुशलता से खेती कर सकें। यह न सिर्फ खेती की उत्पादकता बढ़ाती है बल्कि खेती करने की लागत को भी कम करती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में चकबंदी की स्थिति
उत्तर प्रदेश में चकबंदी की प्रक्रिया व्यापक रूप से लागू की गई है जहाँ 1,27,225 गांवों में चकबंदी सफलतापूर्वक पूरी हो चुकी है और 4497 गांवों में चल रही है। वहीं बिहार में भी चकबंदी का काम जारी है जिसे 70 के दशक में शुरू किया गया था और 1992 में बंद कर दिया गया था। हालांकि कोर्ट के आदेश पर इसे फिर से शुरू किया गया है।
चकबंदी की आवश्यकता और लाभ
चकबंदी से किसानों को उनके विभाजित खेतों के बदले एक ही जगह पर बराबर आकार की जमीन मिल जाती है जिससे खेती करना अधिक सुविधाजनक हो जाता है। इससे अतिक्रमण की समस्या में भी कमी आती है।
राज्यों में चकबंदी कानूनों की विविधता
भारत में चकबंदी के लिए विभिन्न राज्यों में अलग-अलग कानून होते हैं। पंजाब मध्य प्रदेश गुजरात और पश्चिम बंगाल में चकबंदी कानून अलग-अलग हैं जिसमें किसानों को ऐच्छिक चकबंदी की सुविधा प्रदान की जाती है।