मुगलों की गंदी नजरों से बचने के लिए हिंदू महिलाएं पहनती थी ये खास चीज, फिर महिला के पास आने से भी डरते थे मुगल
राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और परंपराएँ इतिहास के विभिन्न दौर से गुजर कर विकसित हुई हैं। मुगल आक्रमणों ने न केवल इस क्षेत्र के इतिहास को प्रभावित किया बल्कि स्थानीय रीति-रिवाजों पर भी अपनी छाप छोड़ी।
राजस्थान की महिलाओं ने मुगलों के डर से घूंघट की परंपरा को अपनाया जो आज भी क्षेत्र के सामाजिक जीवन का एक हिस्सा है। इस प्रथा के पीछे की सोच यह थी कि घूंघट महिलाओं को मुगलों की नजरों से बचाने में मददगार होगा।
ताबीज एक सुरक्षात्मक उपाय
मुगलों से दुल्हनों को बचाने के लिए एक अनोखा उपाय ताबीज का इस्तेमाल था। यह ताबीज सूअर के बालों से बना होता था जिसे मुसलमानों में नापाक समझा जाता है। इस ताबीज के पहने जाने से मुगल उन महिलाओं को नहीं छूते थे।
मुगलों के प्रभाव से बचने के लिए हिंदू रीति-रिवाजों में भी बदलाव किए गए। एक मां ने अपने बेटे की बारात में जाना छोड़ दिया और रात को तारों के छांव में दुल्हन विदा होने लगी। इन सब परिवर्तनों का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
ढोलना एक पारंपरिक ताबीज
राजस्थानी महिलाओं और दुल्हनों ने अपनी सुरक्षा के लिए गले में ताबीज बांधना शुरू किया जिसे ढोलना कहा जाता है। यह प्रथा आज भी कई राजस्थानी परिवारों में प्रचलित है। ढोलना न केवल एक सुरक्षात्मक उपाय था, बल्कि यह विवाहित महिलाओं की पहचान और सम्मान का प्रतीक भी बन गया।
ढोलना मंगलसूत्र की तरह एक महत्वपूर्ण विवाहित स्त्री के आभूषण में से एक है। इसका उल्लेख आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा सौंदर्य लहरी में किया गया है। छठवीं शताब्दी से इसकी शुरुआत मानी जाती है। जिससे यह पता चलता है कि भारतीय समाज में पारंपरिक आभूषणों की परंपरा कितनी प्राचीन है।
इस्लामिक ताबीज से समानता
ढोलना की विशेषता यह है कि यह दूर से इस्लामिक ताबीज की तरह दिखता है। जिससे हिंदू लड़कियां कई बार मुसलमान बनकर अपनी जान बचाती थीं। इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में सुरक्षा के लिए लोग किस हद तक जा सकते हैं और पारंपरिक आभूषणों का उपयोग कितना गहरा और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है।
सामाजिक परिवर्तन और अडॉप्शन
मुगल आक्रमण के दौरान राजस्थानी समाज में उत्पन्न हुए इन बदलावों ने सामाजिक और सांस्कृतिक अडॉप्शन की एक मिसाल कायम की। यह दिखाता है कि कैसे समाज विभिन्न चुनौतियो का सामना करने के लिए नए-नए समाधान खोजता है। घूंघट की परंपरा, ताबीज का इस्तेमाल और ढोलना का प्रचलन ये सभी राजस्थानी समाज के अनुकूलनशीलता और सृजनशीलता को दर्शाते हैं।
पारंपरिक आभूषणों का महत्व
इन आभूषणों का महत्व सिर्फ सांस्कृतिक या धार्मिक नहीं है बल्कि ये सामाजिक सुरक्षा और स्थितिगत जागरूकता के प्रतीक भी हैं। ढोलना और मंगलसूत्र जैसे आभूषण न सिर्फ महिलाओं की शादीशुदा स्थिति को दर्शाते हैं बल्कि ऐतिहासिक संदर्भ में उनकी रक्षा के माध्यम भी रहे हैं।
राजस्थानी समाज के रीति-रिवाजों में परिवर्तन
मुगल आक्रमणों ने न केवल राजस्थानी समाज के रीति-रिवाजों में परिवर्तन किया बल्कि एक गहरा सामाजिक चिंतन भी पैदा किया। यह चिंतन आज भी हमें पारंपरिक आभूषणों और रीति-रिवाजों के महत्व को समझने की प्रेरणा देता है।