भारत में पहले बिना बिजली के कैसे चलती थी AC वाली ट्रेनें, आजादी से पहले ट्रेन के डिब्बों को ठंडा रखने के लिए होता था ये काम
भारतीय रेलवे का विकास हमेशा से ही भारतीय समाज के विकास और सामाजिक एकीकरण में महत्वपूर्ण रहा है। आज हम जब वंदे भारत जैसी सेमी हाई स्पीड ट्रेनों और हाइड्रोजन ट्रेनों की तैयारी की बात करते हैं। तब जाकर कहीं हमें यह समझ में आता है कि भारतीय रेलवे ने कितनी दूर की यात्रा तय की है।
लेकिन इसकी शुरुआती उपलब्धियों में से एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था - भारत में पहली बार एसी ट्रेन का संचालन। भारतीय रेलवे का इतिहास न केवल उसकी तकनीकी उन्नति की गाथा है। बल्कि यह भारतीय समाज के तकनीकी और सामाजिक विकास की भी कहानी है।
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फ्रंटियर मेल से गोल्डन टेंपल मेल तक का सफर, और उससे आगे वंदे भारत तक की यात्रा, यह सभी यह दर्शाते हैं कि भारतीय रेलवे किस तरह से अपनी विरासत को संजोते हुए भविष्य की ओर बढ़ रही है।
भारत की पहली एसी ट्रेन
भारत में एयर कंडीशन्ड ट्रेनों का इतिहास 1934 तक जाता है। जब फ्रंटियर मेल जिसे आज हम गोल्डन टेंपल मेल के नाम से जानते हैं। फ्रंटियर मेल में पहली बार एसी कोच लगाया गया था। यह ट्रेन मुंबई से अमृतसर के बीच चलती थी और इसे मुंबई सेंट्रल और लाहौर के बीच 1 सितंबर, 1928 को पहली बार चलाया गया था।
ठंडा करने का अनूठा तरीका
इस ट्रेन में ठंडा करने के लिए एक अनूठी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। कोचों के नीचे विशेष बॉक्स में बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं और पंखों की मदद से हवा को ठंडा करके पूरे कोच में वितरित किया जाता था। यह प्रक्रिया न केवल प्रभावी थी बल्कि उस समय के लिए बहुत ही नवीन थी।
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अपने समय की सबसे तेज ट्रेन
फ्रंटियर मेल की टाइमिंग की दूर-दूर तक चर्चे थे। इस ट्रेन को लेकर कहा जाता था कि आपकी रोलेक्स वॉच धोखा दे सकती है। लेकिन फ्रंटियर मेल नहीं। कहा जाता है कि एक बार ये ट्रेन 15 मिनट लेट हो गई थी, तो जांच के आदेश दे दिए गए थे।
इसके अलावा ये ट्रेन उस समय देश की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन मानी जाती थी। देश के विभाजन के बाद फ्रंटियर मेल मुंबई और अमृतसर के बीच चलाई जाने लगी। 1996 में इस ट्रेन को 'गोल्डन टेंपल मेल' का नाम दिया गया।