130KM की तेज स्पीड से दौड़ रही ट्रेन कैसे बदल लेती है अपनी पटरी, जाने किसके हाथों में होता है इसका कंट्रोल
एक ट्रेन में हजारों की संख्या में यात्री यात्रा करते हैं। इस दौरान उन्हें किसी भी चीज की चिंता नहीं रहती। लेकिन कई बार आप यह सोचकर हैरान रह जाएंगे की चलती ट्रेन एक ट्रैक से दूसरे ट्रैक पर कैसे चली जाती है। यह सोचकर आप डर भी सकते हैं लेकिन इसमें डरने की बात नहीं है।
लोको पायलट ऐसा आसानी से कर लेते हैं। आज हम आपको इससे जुड़ी कई बातें बताएंगे जिससे आपके मन में उठ रहे सारे सवालों का जवाब मिल सके। ट्रेन के ट्रैक बदलने की प्रक्रिया को समझने से हमें यह अनुभव होता है कि यह सभी तकनीकी कार्य बड़ी ही सरलता से होते हैं।
लोको पायलट और रेलवे अधिकारी इन सभी प्रक्रियाओं को सम्पन्न करते हैं ताकि यात्री सुरक्षित और समय पर अपने गंतव्य तक पहुंच सकें।
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लोको पायलट आसानी से बदल सकते हैं ट्रैक
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक जहां ट्रेन ट्रैक बदलती है उसके दोनों सिरों को तकनीकी रूप से स्विच कहा जाता है। उनमें से एक बायां स्विच है और दूसरा दायां स्विच है। ट्रेन ट्रैक में मौजूद इन दो स्विचों की वजह से ट्रेन आसानी से अपना ट्रैक बदल सकती है।
दिलचस्प बात यह है कि ट्रैक बदलने के लिए दिन या रात की कोई बाधा नहीं है। ट्रेन चलाने वाला लोको पायलट यह काम आसानी से कर सकता है।
ट्रैक पर दो तकनीकी स्विच लगे हैं
वह स्थान जहां ट्रेन चलते समय दूसरे ट्रैक पर शिफ्ट होती है उसे आम भाषा में संधा भी कहा जाता है। एक बायां स्विच और एक दायां स्विच है। इनमें से एक स्विच ट्रैक से चिपका हुआ है जबकि दूसरा स्विच खुला है।
उस खुले स्विच के जरिए ही ट्रेन को दूसरे ट्रैक पर ले जाया जाता है या ट्रेन का रास्ता बदला जाता है। इस स्विच की वजह से ट्रेन बाएं या दाएं दिशा में आसानी से चलती है।
अगले स्टेशन मास्टर को मिलती है सूचना
आपको इस प्रक्रिया को और आसान भाषा में समझाएं। दरअसल जब ट्रेन किसी स्टेशन से निकलती है तो उस स्टेशन का मास्टर अगले स्टेशन मास्टर को ट्रेन के आने की सूचना देता है। इसके बाद अगले स्टेशन का मास्टर प्लेटफार्म और लाइन क्लियर की स्थिति का जायजा लेने के बाद लाइन क्लियर का संदेश भेजता है।
यह संदेश सांधे से 180 मीटर दूर स्थित एक होम सिग्नल के जरिए दिया गया है। जब तक लोको पायलट को यह संदेश नहीं मिलता तब तक वह अपनी ट्रेन को सिग्नल के पास ही रोके रखता है।
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शाम ढलने के बाद गुजरती है ट्रेन
जब अगले स्टेशन पर लाइन क्लियर हो जाती है तो स्टेशन मास्टर स्वचालित रूप से उस लाइन पर संधे सेट कर देता है जहां से उक्त ट्रेन को गुजरना होता है। इस संधा को सेट करने के बाद ट्रेन को हरा सिग्नल भेज दिया जाता है। इसके बाद ट्रेन आसानी से ट्रैक बदलकर अपनी मंजिल की ओर बढ़ सकती है।