रामलला के ललाट सूर्य की रोशनी कैसी पहुँचती है, जाने किस तकनीक की मदद से होता है सूर्यतिलक का प्रॉसेस

दशकों की प्रतीक्षा और संघर्षों के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है। जनवरी के महीने में आयोजित रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में देशभर से जुटी विभिन्न हस्तियों ने इस ऐतिहासिक क्षण में भाग लिया। इस समारोह ने न केवल अयोध्या बल्कि सम्पूर्ण भारत के लोगों की आस्था को नई मिली है।

 

दशकों की प्रतीक्षा और संघर्षों के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है। जनवरी के महीने में आयोजित रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में देशभर से जुटी विभिन्न हस्तियों ने इस ऐतिहासिक क्षण में भाग लिया। इस समारोह ने न केवल अयोध्या बल्कि सम्पूर्ण भारत के लोगों की आस्था नई मिली है।

रामनवमी की भव्य तैयारियां

अब जबकि रामनवमी का पर्व नजदीक है अयोध्या में इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं। 17 अप्रैल को पूरे भारतवर्ष में रामनवमी मनाई जाएगी और अयोध्या के राम मंदिर में विशेष आयोजन होंगे। इस वर्ष रामलला पर एक खास प्रकार का सूर्य तिलक किया जाएगा जिसके लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होगा।

ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम का इस्तेमाल

रामनवमी के दिन एक विशेष ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम की सहायता से रामलला के सिर पर सूर्य की किरणों का तिलक किया जाएगा। यह तिलक अयोध्या के राम मंदिर के गर्भगृह में सीधे रामलला के मस्तक पर पड़ेगा। इस प्रक्रिया के लिए सूर्य की किरणें पहले एक शीशे से होकर तीन लेंसों के माध्यम से गुजरेंगी और फिर अंतिम शीशे पर पड़ेगी। इस दौरान सूर्य की किरणें 75 मिमी के गोल आकार में 4 मिनट तक रामलला के मस्तिष्क पर दिखाई देंगी।

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तकनीकी जानकारी और इसकी महत्वता

यह प्रक्रिया उन्नत तकनीकी व्यवस्था के तहत संचालित की जाती है जिसमें तीसरी मंजिल पर स्थापित एक रिफ्लेक्टर से सूर्य की किरणें पहले पड़ेंगी और फिर यह किरणें अलग-अलग लेंस और शीशों के माध्यम से गुजरते हुए गर्भगृह में स्थापित रामलला के सामने पहुँचेंगी। इस तकनीक में कई इलेक्ट्रिक गियर लगे हुए हैं जो लेंस की गति को समायोजित करते हैं ताकि सूर्य की किरणें सटीक तरीके से रामलला के मस्तक पर पड़ें।