बिना गुलाब और जामुन के क़ैसे मिला 'गुलाब जामुन' को ये नाम, ज़्यादातर लोगों को नही पता होती सही जानकारी

भारतीय घरों में गुलाब जामुन अक्सर मिठाइयों का नाम होता है। हर घर में कम से कम एक व्यक्ति गुलाब जामुन का शौकीन है।
 

भारतीय घरों में गुलाब जामुन अक्सर मिठाइयों का नाम होता है। हर घर में कम से कम एक व्यक्ति गुलाब जामुन का शौकीन है। भारतीय घरों में यह अक्सर खाना खाने के बाद खाया जाता है, अक्सर सिर्फ मिठाई के तौर पर। गुलाब जामुन भी खाए होंगे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अस मिठाई में गुलाब नहीं जामुन होता, तो फिर इसका नाम कैसे गुलाब जामुन पड़ गया?

गुलाब जामुन फारस से संबंधित है। पर्शियन शब्दों के अनुसार, गुलाब आब और गुल से बना है। पहला शब्द फूल और दूसरा पानी का अर्थ है। इसका भावार्थ निकाला जाए तो यह मीठा गुलाब का पानी है। भारत में यह आम तौर पर चाशनी कहलाता है। वहीं दूध से तैयार किए गए खोये से गोलियां बनाई जाती थीं। घी में गहरा भूरा रंग आने तक इसे तला जाता था। इसका रंग और आकार इसे जामुन कहते थे। इसलिए इस मिठाई को गुलाब जामुन कहा गया।

पहली बार किस देश में बनाया गया गुलाब जामुन

ईरान ने मध्ययुग में पहली बार गुलाब जामुन बनाया था, एक थ्‍योरी कहती है। तुर्की ने बाद में इसे भारत भेजा। भारत में इस खूबसूरत मिठाई की शुरुआत हुई। वहीं, दूसरी कहानी बताती है कि मुगल सम्राट शाहजहां के रसोइये ने एक बार ये मिठाई गलती से बनाई थी। शाहजहां ने ये मिठाई बहुत पसंद की, और बाकी लोग भी इसे पसंद करते थे। यह धीरे-धीरे भारत के हर राज्य में फैल गया। धीरे-धीरे इसने बाकी सुखों के बीच अपना खास स्थान बनाया।

लेडी कैनिंग की डिमांड पर बनी अलग मिठाई

गुलाब जामुन को लेकर एक कहानी ये भी है कि 1850 के आखिर में कोलकाता के एक हलवाई भीम चंद्र नाग ने गुलाब जामुन बनाए थे. कहानी कहती है कि गवर्नर जनरल लॉर्ड चार्ल्स कैनिंग की पत्‍नी लेडी कैनिंग को मिठाइयां बहुत पसंद थीं. उन्‍होंने भीम चंद्र नाग से कोई खास मिठाई बनाने को कहा. ये बात तेजी से सभी को पता चल गई तो भीम चंद्र ने कुछ खास और बहुत अलग बनाने की कोशिश की. इसी कोशिश में नाग ने गुलाब जामुन बना डाले. बता दें कि गवर्नर जनरल लॉर्ड चार्ल्स कैनिंग बाद में भारत के पहले वायसराय भी बने.

लेडी कैनिंग के नाम पर बना ‘लेदिकेनी’

भोजन के बाद भीम चंद्र नाग ने लेडी कैनिंग को मिठाई दी, जो उन्हें बहुत पसंद आई। उस मिठाई को खाने से वह बहुत खुश हुई। उस समय तक इस मिठाई का नाम नहीं था। यह गोल होने के बजाय सिलेंडर की तरह बनाया गया था। धीरे-धीरे लोग यह मिठाई बहुत पसंद करने लगे। इस मिठाई को लोग लेडी कैनिंग के नाम से "लेदिकेनी" कहने लगे। वायसराय की पत्नी ने हर खास अवसर और समारोह में इस मिठाई को महत्वपूर्ण स्थान दिया।

बमीह और तुलुम्‍बा जैसा है गुलाब जामुन

तुर्की तुलुम्बा गुलाब जामुन और फारसी बमीह लगभग समान हैं। फूड हिस्टोरियन का कहना है कि बमीह या तुलुम् बा से गुलाब जामुन बनाने का विचार मुगल रसोइयों में आया होगा। शाहजहां के रसोइयों ने इसके बाद गुलाब जामुन बनाया होगा। माइकल क्रोनडल, एक फूड हिस्टोरियन, ने अपनी किताब "द डोनट: हिस्ट्री, रेसिपीज और लोर बोस्टन से बर्लिन तक" में लिखा है कि फारसी आक्रमणकारी गोल फ्रिटर लेकर आए थे। यही गुलाब जामुन बन गया। मध् यपूर्व तक इस स्वीट डिश को गुलाब जल में भिगोया जाता है, उन्होंने लिखा। वहीं, भारत में चीनी की चाशनी में गुलाब जामुन डालते हैं।

लुकमात-अल-कादी से काफी मिलता-जुलता

अरबी देशों में खाई जाने वाली मिठाई गुलाब जामुन और लुकमात-अल-कादी में कई समानताएं हैं। तैयार करने का तरीका थोड़ा अलग है। Kroundl कहते हैं कि गुलाब जामुन और लुकमात-अल-कादी दोनों पर्शियन डिश से निकले हैं। दोनों चाशनी से जुड़े हैं। याद रखें कि पश् चिम बंगाल में खोये से बनाई गई मिठाई को गोलप जैम, कालो जैम और पंटुआ भी कहते हैं। मध्य प्रदेश का जबलपुर गुलाब जामुन के लिए भी प्रसिद्ध है। झुर्रे के रसगुल्ले जबलपुर के कटंगी में काफी बड़े होते हैं।