ट्रेन की हेडलाइट से कितने KM आगे तक देख सकता है ट्रेन ड्राइवर, सच्चाई जानकर तो आपको भी नही होगा भरोसा

जब भी हम ट्रेन में यात्रा करते हैं उसके इंजन के आगे लगी हेडलाइट की चमक हमें दिखाई देती है। यह हेडलाइट न केवल रास्ता रोशन करती है, बल्कि यात्रा की सुरक्षा का भी एक अहम हिस्सा है। आइए इस आर्टिकल में ट्रेन की हेडलाइट से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को जानते हैं।
 

जब भी हम ट्रेन में यात्रा करते हैं उसके इंजन के आगे लगी हेडलाइट की चमक हमें दिखाई देती है। यह हेडलाइट न केवल रास्ता रोशन करती है, बल्कि यात्रा की सुरक्षा का भी एक अहम हिस्सा है। आइए इस आर्टिकल में ट्रेन की हेडलाइट से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को जानते हैं।

लोकोमोटिव की अलग अलग लाइटें

ट्रेन के इंजन में मुख्य रूप से तीन प्रकार की लाइटें लगी होती हैं। मुख्य हेडलाइट जिससे रात के समय में रास्ता साफ दिखाई देता है वहीं दो अन्य लाइटें लाल और सफेद रंग की होती हैं जो विशेष परिस्थितियों में काम आती हैं। इन लाइटों को 'लोकोमोटिव इंडिकेटर्स' के नाम से जाना जाता है। पहले ये हेडलाइट्स इंजन के ऊपर लगाई जाती थीं लेकिन अब इन्हें इंजन के मध्य में लगाया जाता है।

हेडलाइट की दूरी और पॉवर 

ट्रेन की हेडलाइट 240 वोल्ट के डायरेक्ट करंट से चलती है, जिसकी रोशनी लगभग 350 से 400 मीटर दूर तक जाती है। इस शक्तिशाली रोशनी के कारण लोको पायलट रात के समय में भी रेलवे ट्रैक को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं जिससे यात्रा सुरक्षित रहती है।

डबल बल्ब व्यवस्था

ट्रेन की हेडलाइट में दो बल्ब होते हैं जिन्हें समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यदि यात्रा के दौरान एक बल्ब खराब हो जाए तो दूसरा बल्ब सक्रिय हो जाता है और रास्ता साफ दिखाई देना जारी रखता है। यह व्यवस्था ट्रेन की सुरक्षित यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

शटिंग के लिए विशेष इंतजाम

जब भी इंजन को शटिंग यानी उल्टी दिशा में चलाया जाता है, तो इंजन में लाल लाइट जलाई जाती है। यह लाल लाइट दिखाती है कि इंजन उल्टी दिशा में चल रहा है जबकि आगे की दिशा में जाने पर सफेद लाइट जलती है। ये रंगीन लाइट्स रेलवे कर्मचारियों को इंजन की गतिविधियों के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करती हैं और उन्हें सूचित करती हैं।