पत्नी के नाम प्रॉपर्टी खरीद रहे है तो भूलकर भी मत करना ये गलती, वरना बाद में करेंगे पछतावा

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में समय-समय पर ऐसे निर्णय सामने आते हैं, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं बल्कि समाज में व्याप्त धारणाओं पर भी प्रकाश डालते हैं। हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाई कोर्ट ने बेनामी...
 

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में समय-समय पर ऐसे निर्णय सामने आते हैं, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं बल्कि समाज में व्याप्त धारणाओं पर भी प्रकाश डालते हैं। हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाई कोर्ट ने बेनामी संपत्ति से जुड़े एक मामले पर अपनी टिप्पणी दी। हाई कोर्ट ने मामले को वापस ट्रायल कोर्ट में भेज दिया है।

ताकि यह तय किया जा सके कि याचिकाकर्ता को संशोधित कानून के तहत छूट मिलेगी या नहीं। इस निर्णय ने कानूनी प्रक्रिया में नई दिशा प्रदान की है। साथ ही साथ इसने उन व्यक्तियों के लिए एक आशा की किरण भी जगाई है जो अपने पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदने के लिए अपनी कमाई का उपयोग करते हैं।

संपत्ति खरीद में पति के अधिकार की पुष्टि

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति को अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अपने पत्नी के नाम पर अचल संपत्ति खरीदने का पूर्ण अधिकार है। इस प्रकार खरीदी गई संपत्ति को बेनामी नहीं कहा जा सकता है। इस निर्णय ने उन सभी पुरुषों के लिए एक उम्मीद की किरण प्रदान की है, जिन्होंने अपनी पत्नियों के नाम पर संपत्ति खरीदी है।

ट्रायल कोर्ट के निर्णय को निरस्त करना

इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता से उनकी खुद की खरीदी गई संपत्ति पर से मालिकाना हक छीन लिया था। जो उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी थी। हाई कोर्ट ने इस निर्णय को निरस्त करते हुए, याचिकाकर्ता की अपील को मंजूरी दी।

कानूनी प्रावधानों का स्पष्टीकरण

हाई कोर्ट ने इस मामले में कहा कि बेनामी ट्रांजैक्शन (प्रोहिबिशन) ऐक्ट 1988 और इसके संशोधित संस्करण में बेनामी लेन-देन और उससे जुड़े अपवादों को साफ तौर पर बताया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस केस में संपत्ति का पत्नी के नाम पर होना। ऐक्ट में दिए गए अपवाद के अंतर्गत आता है।