भारत में एक नही बल्कि दो बार सरकार ने चलाया था 10 हजार रुपए का नोट, पर बाद में इस कारण करना पड़ गया डीमोनेटाइज़
भारतीय करेंसी ने न केवल आर्थिक लेन-देन को सुगम बनाया है बल्कि इसने देश की सांस्कृतिक विविधता, इतिहास और तकनीकी प्रगति को भी दर्शाया है। हाल ही में इस करेंसी को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है। खासकर तब जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक नई मांग उठाई थी ।
करेंसी पर देवी-देवताओं की तस्वीर
केजरीवाल की मांग के अनुसार भारतीय करेंसी नोटों पर गणेश-लक्ष्मी की तस्वीर छापने का सुझाव दिया गया था। इस सुझाव का उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा और शक्ति प्रदान करना है।
इस पहल के पीछे की सोच यह है कि देवी-देवताओं की तस्वीरें नोटों पर छापने से लोगों में धन के प्रति सम्मान की भावना बढ़ेगी और इसके साथ ही आर्थिक समृद्धि की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।
भारतीय करेंसी की विविधता और इतिहास
भारतीय करेंसी अपने में एक विशेष इतिहास समेटे हुए है। जब RBI ने 1938 में 10,000 रुपये का नोट छापा तो उसे भारतीय करेंसी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया। हालांकि इसे बाद में डीमोनेटाइज़ कर दिया गया परंतु यह बताता है कि भारतीय करेंसी का इतिहास कितना रोचक और विविधतापूर्ण है।
भाषाओं की विविधता से समृद्ध नोट
भारतीय बैंकनोट के भाषा पैनल में 15 भाषाओं का होना देश की सांस्कृतिक विविधता और एकता को दर्शाता है। यह विशेषता भारतीय करेंसी को विश्व की अन्य मुद्राओं से अलग करती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत सरकार न केवल आर्थिक मजबूती पर बल देती है बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि और विविधता को भी समान महत्व देती है।
एक ही सीरियल नंबर के नोट
एक ही सीरियल नंबर के दो नोट होने की संभावना भारतीय करेंसी की एक और रोचक विशेषता है। यह नोटों की विशिष्टता और पहचान में एक महत्वपूर्ण कारक है। यह तथ्य नोटों की प्रिंटिंग और वितरण प्रणाली की जटिलता और सटीकता को भी दर्शाता है।