दुनिया के इस कोने में डिलीवरी के टाइम महिलाओं के रोना और चिल्लाना है सख्त मना, जाने नियम ना मानने वालों के साथ कैसे होता है बर्ताव

किसी भी महिला के लिए मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है, क्योंकि वह एक नन्ही सी जान को अपने अंदर समेट हुए रहती है। लेकिन गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई प्रकार...
 

किसी भी महिला के लिए मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है, क्योंकि वह एक नन्ही सी जान को अपने अंदर समेट हुए रहती है। लेकिन गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक परेशानियों से होकर गुजरना पड़ता है, जिसकी वजह वह काफी कमजोर भी होती हैं।

इसके अलावा डिलीवरी के दौरान महिला को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से इस दौरान महिला का चीखना, चिल्लाना और रोना बहुत ही सामान्य माना जाता है। लेकिन इस दुनिया में एक ऐसा देश भी मौजूद है, जहां महिलाओं को डिलीवरी के दौरान चुप रहकर दर्द सहन करना पड़ता है।

प्रसव पीड़ा को सहन करती हैं महिलाएं

हम अफ्रीकी देश नाइजीरिया की बात कर रहे हैं, जहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। ऐसा ही एक समुदाय है बोनी, जहां लड़कियों को बचपन से ही यह शिक्षा दी जाती है कि उन्हें प्रसव पीड़ा के दौरान बिल्कुल भी रोना नहीं होता है।

वहीं नाइजीरिया के फुलानी समुदाय में प्रसव के दौरान महिलाओं को रोना या चिल्लाना शर्मनाक व डरवाना माना जाता है, जिसकी वजह से इन समुदाय की महिलाएं प्रसव पीड़ा सहन करने पर मजबूर हैं।

ऐसा करने से उनके देवता होते हैं खुश 

नाइजीरिया में एक या दो नहीं बल्कि कई समुदायों में बच्चा पैदा करने के दौरान महिला को चुप रहकर दर्द सहन करने की सीख दी जाती है, क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा करने से उनके देवता खुश होते हैं।

लेकिन शायद इन समुदाय के पुरुषों को इस बात की जानकारी नहीं है कि प्रसव की पीड़ा कितनी दर्दनाक होती है, जबकि इस नियम का पालन करने के लिए एक महिला दूसरी महिला को मजबूर भी करती है।

दो बच्चों की मां ने सुनाई आपबीती 

दो बच्चों की मां मोफ़ोलुवाके जोन्स नामक एक नाइजीरियन महिला ने अपनी प्रसव पीड़ा का अनुभव शेयर करते हुए बताया कि मेरा पहला बच्चा नाइजीरिया में पैदा हुआ, जहां प्रसव के दौरान होने वाले दर्द को चुपचाप सहने की परंपरा है।

वहीं 5 साल बाद दूसरे बच्चे का जन्म कनाडा में हुआ, जहां हॉस्पिटल के सभी कर्मचारियों ने मेरा बहुत ख़्याल रखा साथ ही मुझे ये भी बताया कि, डिलीवरी के बाद क्या करना है और क्या नहीं?

मेरी कोई भी जांच करने से पहले मेरी परमीशन ली जाती थी। इसके अलावा, मेरे हॉस्पिटल जाते ही मुझे दर्द से लड़ने के अलग-अलग विकल्प बताने के साथ-साथ उसके फ़ायदे और नुकसान भी बताए।

वहीं 5 साल बाद जब मोफोलुवाके जोन्स दोबारा गर्भवती हुई, तो उस दौरान वह कनाडा में थी। कनाडा के अस्पताल में मोफोलुवाके को सभी सुख सुविधाएं मिली, जबकि अस्पताल के स्टाफ ने उनका बहुत ज्यादा ख्याल रखा था।

इतना ही नहीं डॉक्टर ने मोफोलुवाके को प्रसव पीड़ा से लड़ने के लिए अलग अलग तरीके भी बताए थे। दूसरे बच्चे को जन्म देने के दौरान मोफोलुवाके जोन्स को एहसास हुआ कि उन्होंने पहली बार प्रसव पीड़ा को कितनी मुश्किल और कठिनाई से सहन किया था।

जबकि उनकी दूसरी डिलीवरी बिल्कुल सामान्य महिलाओं की तरह हुई थी। मोफोलुवाके का कहना है कि महिला को सशक्त होने के लिए प्रसव पीड़ा को सहन करने की जरूरत नहीं है और न ही यह किसी परंपरा का हिस्सा होना चाहिए।

लेकिन दुनिया के विभिन्न देशों में प्रसव के दौरान महिलाओं के ऊपर नियम कानून और परंपरा थोप दी जाती हैं, जिसकी वजह से उन्हें दर्द में भी रोने या चिल्लाने की अनुमति नहीं होती है।

नाइजीरिया में डिलीवरी के दौरान रोने और चिल्लाने को महिला की कमजोरी के साथ जोड़कर देखा जाता है, जबकि ईसाई धर्म में प्रसव पीड़ा में महिला के चिल्लाने को ईश्वर की नाराजगी से जोड़कर देखा जाता है।