भारत का ऐसा रेल्वे ट्रैक जिसपर आज भी है अंग्रेजो का कब्जा, भरना पड़ता है करोड़ों का लगान

भारतीय रेलवे (Indian Railways), जो प्रतिदिन लाखों यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाती है का एक अनोखा पहलू भी है.
 

private indian railway: भारतीय रेलवे (Indian Railways) जो रोजाना लाखों यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाती है का एक अनोखा पहलू भी है. यह भारत की एकमात्र रेलवे लाइन है जिसपर विदेशी कंपनी का मालिकाना हक है और जिसे आजाद भारत के बावजूद ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन एंड कंपनी (Click Nixon & Company) द्वारा नियंत्रित किया जाता है. यह नैरो गेज ट्रैक आज भी उसी विदेशी संस्था के अधीन है, जिसे भारतीय रेलवे को रॉयल्टी (Royalty) देनी पड़ती है.

भारत का एकलौता प्राइवेट रेल्वे स्टेशन 

जबकि भारतीय रेलवे अपने सभी ट्रैकों का प्रबंधन स्वयं करती है, एक अपवाद है जिसे शकुंतला रेलवे (Shakuntala Railway) के नाम से जाना जाता है. यह नैरो गेज ट्रैक महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर के बीच फैला है और इसे एक ब्रिटिश कंपनी ने निर्मित किया था. इस ट्रैक पर ब्रिटिश कंपनी का मालिकाना हक बरकरार है और भारतीय रेलवे इसके उपयोग के लिए हर साल बड़ी राशि में रॉयल्टी का भुगतान करती है.

इस ट्रैक पर चलती है सिर्फ एक ट्रेन

शकुंतला एक्सप्रेस (Shakuntala Express) जो इस ट्रैक पर चलने वाली एकमात्र ट्रेन है का अपना एक विशेष महत्व है. यह ट्रेन महाराष्ट्र के विभिन्न छोटे स्टेशनों को जोड़ती है और इसका संचालन पुराने स्टीम इंजन से शुरू हुआ था जिसे बाद में डीजल इंजन में परिवर्तित किया गया. यह ट्रेन अपनी धीमी गति और लंबे सफर के लिए जानी जाती है.

ब्रिटिश कंपनी को 1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी

ब्रिटिश कंपनी को दी जाने वाली रॉयल्टी (Royalty payments) के कारण यह रेलवे लाइन विशेष चर्चा का विषय बनी रहती है. भारतीय रेलवे को इस ट्रैक के प्रयोग के लिए प्रति वर्ष 1 करोड़ 20 लाख रुपये की बड़ी राशि चुकानी पड़ती है. हालांकि, रिपोर्ट्स के अनुसार, अब यह रॉयल्टी देनी बंद कर दी गई है क्योंकि ट्रैक अब भारतीय रेलवे की जमीन पर स्थित है.

क्यों शुरू हुई थी रेल और क्यों बंद हुई शकुंतला एक्सप्रेस

इस रेलवे ट्रैक का निर्माण मूल रूप से अमरावती में कपास (Cotton transportation) की खेती को मुंबई पोर्ट तक पहुँचाने के लिए किया गया था. शकुंतला एक्सप्रेस की बंदी मुख्य रूप से इसके जर्जर ट्रैक और खराब मेंटेनेंस के कारण हुई. यह ट्रेन आखिरी बार 2020 में चली थी और स्थानीय लोग इसे पुनः शुरू करने की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही, नैरो गेज को ब्रॉड गेज (Broad gauge conversion) में परिवर्तित करने की भी मांग की जा रही है ताकि यात्रा और अधिक सुगम और तेज हो सके.