भारत का सबसे अजीबोगरीब गांव जिसे 'विधवाओं का गांव' के नाम से जानते है लोग, शादी होने के कुछ टाइम बाद ही औरतें हो जाती है विधवा

वैसे तो भारत में लाखों गांव है और सभी गांवों में लोगों की अपनी भाषा एंव  रहने के अपने तौर-तरीकें  हैं। इसी वजह से भारत के गांव विश्व भर में  बेहद ही  प्रसिध्द  है।
 

वैसे तो भारत में लाखों गांव है और सभी गांवों में लोगों की अपनी भाषा एंव  रहने के अपने तौर-तरीकें  हैं। इसी वजह से भारत के गांव विश्व भर में  बेहद ही  प्रसिध्द  है। लेकिन आज हम आपको जिस गांव के बारे में  बताने जा रहे हैं।  

शायद ही है कि आपने इससे पहले इस गांव का नाम सुना हो क्योंकि इस गांव को लोग  विधवाओं का गांव कहते हैं। यह भारत में एक इकलौता ऐसा गांव है जिसका नाम इतना अजीब है। आइए जानते इस गावं के बारे में।

राजस्थान के बूंदी जिले में विधवाओं का गांव

विधवाओं के गांव के नाम जाने वाला गांव राजस्थान के बूंदी जिले में स्थिति है। इसका नाम बुधपुरा गांव है। बता दें कि यहां कि महिलाओं तक को 10-10 घंटे मजदूरी करनी पड़ती है जब जाकर ये अपने परिवार का भरन-पोषण कर पाती हैं।

ऐसे सवाल में ये उठता है आखिर इस गांव में पुरुषों की असमय मौत क्यों हो जाती हैं। इस गांव में रहने वाले लोग इस कारण जानते है। लेकिन दुनिया अभी भी इस सच से दूर है। दरअसल इस गांव में पुरुषों की मौत का बड़ा कारण है। यहां मौजूद खदानें जी हां  जिसमें यहां के लोग काम करते हैं।

खदानों में काम करने से यहां के लोगों को सिलिकोसिस नामक बीमारी होती है। यह बीमारी बेहद ही खतरनाक है क्योंकि इससे  गांव के लोगों की मौत हो जाती हैं। गरीब मजदूर वर्ग के लोगों को समय रहते इलाज न मिलने की वजह भी मौत का एक बड़ा कारण है।

पत्थरों को तराशनें में उड़ती सिलिका डस्ट

शादीशुदा महिलाओं के पतियों की मौत की वजह से यहां की महिलाओं को पत्थर तराशनें का काम करना पड़ता है। और ये महिलाएं इन्हीं खदानों में फिर से काम करने के लिए मजबूरी बस फिर आ जाती हैं।  

बता दें की पत्थरों को तराशने के दौरान सिलिका डस्ट कारीगरों के फेफड़ों में चली जाती है। इससे लोगों के फेंफड़ों में सक्रमंण फैलने लगता है। इसी वजह  लोग बीमार पड़ते है और समय रहते इलाज किया तो लोगों की जान भी बच जाती है।

पति की मृत्यु के बाद फिर उसी खदान में जाती है महिलाएं

बच्‍चों को भूख के कारण मरने से बचाने के लिए अब विधवा महिलाएं भी बलुआ पत्‍थर तराशने के लिए जानलेवा काम को करने को  मजबूर हैं। यहां पर इन पत्थरों की खदानों में काम करने वाली महिला हो या पुरुष सभी कोई सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। यहां पर हालात इतने बत्तर हो गए है कि कुल आबादी का 50 फीसदी लोगों को श्वसन संबंधी बीमारी है।

सरकार की अनदेखी झेल रही महिलाएं

ये पत्थर की खदानें लोगों के लिए काम करने लायक नहीं है। फिर भी लोग अपने परिवार के लिए यहां पर काम करते हैं। दर्जनों महिलाएं अपने पति के चले जाने के बाद यहीं काम करने आती है।

ताकि परिवार को आर्थिक समस्या का सामना न करनी पड़े। यहां पर इन लोगों के मदद करने न तो सरकार की तरफ से कभी कोई पहल की गई और नही खदान के संचालकों द्वारा मजदूरों के हित कोई कदम उठाया।

खदान संचालकों इस ओर कोई ध्यान नहीं

लिहाजा आज भी यहां के मजदूर बत्तर जिंदगी के बीच रोज अपनी जंग लड़ रहे। कुछ निजी संस्थाओं ने इन लोगों की मदद के कुछ जरुर किए लेकिन वह नाकाफी साबित हो रही है।

जरुरी एक बड़ी पहल की जो या तो सरकार कर सकती है या फिर खदान के मलिकों को मजदूरों के हित में नीतियां बनानी होगी तभी इनकी स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है।