सातवें आसमान से औंधे मुंह धड़ाम से गिरी सरसों तेल की कीमतें, नई कीमत सुनकर खरीदारी करने वालों की लगी भीड़

भारतीय तेल-तिलहन बाजार में हाल ही में एक सुखद परिवर्तन देखने को मिला है। शनिवार को सरसों, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चे पाम तेल और पामोलीन एवं बिनौला तेल के दाम में सुधार के साथ बंद हुए। जिसका श्रेय सरसों की...
 

भारतीय तेल-तिलहन बाजार में हाल ही में एक सुखद परिवर्तन देखने को मिला है। शनिवार को सरसों, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चे पाम तेल और पामोलीन एवं बिनौला तेल के दाम में सुधार के साथ बंद हुए। जिसका श्रेय सरसों की सरकारी खरीद में वृद्धि को जाता है।

सरकारी खरीद में वृद्धि से खाद्य तेलों और तिलहनों के बाजार में सकारात्मक बदलाव आया है। यह न केवल किसानों के लिए अच्छी खबर है, बल्कि उपभोक्ताओं और पेराई मिलों के लिए भी एक उम्मीद की किरण है। आगे भी सरकार और बाजार के समन्वय से तेल-तिलहन उद्योग में स्थिरता और समृद्धि की आशा की जा सकती है।

उच्च थोक भाव और मूंगफली तेल-तिलहन की स्थिरता

इसके विपरीत मूंगफली तेल-तिलहन के भाव में विशेष परिवर्तन नहीं आया और वे पूर्वस्तर पर ही बंद हुए। इसकी प्रमुख वजह उच्च थोक भाव पर खरीदारी का कम होना बताया जा रहा है।

आयातित तेलों की थोक कीमतें और पेराई मिलों पर प्रभाव

पेराई मिलों के सामने आर्थिक चुनौतियां भी हैं, जहां सरसों और मूंगफली की पेराई में 4-5 रुपये प्रति किलोग्राम का नुकसान होता है। इसकी एक वजह आयातित तेलों की थोक कीमतों में गिरावट है, जिससे बाजार की धारणा प्रभावित होती है और देशी तिलहनों की खपत मुश्किल हो जाती है।

खाद्य तेलों की खुदरा बिक्री और उपभोक्ता वर्ग

खुदरा बाजार में ये खाद्य तेल पूरे दाम पर बिक रहे हैं, जिससे उपभोक्ताओं की जेब पर असर पड़ता है। नवरात्रि और शादी के सीजन में इन खाद्य तेलों की मांग रहती है, जिससे कीमतों में और वृद्धि हो सकती है।

आयात पर अफवाहें और किसानों की प्रतीक्षा

सूत्रों के अनुसार सोयाबीन और सूरजमुखी के आयात में वृद्धि की चर्चा ने कुछ समय के लिए बाजार में हलचल मचाई थी। हालांकि अब जब सरकारी खरीद बढ़ गई है। किसानों को भी अपनी सरसों की फसलों को पूरी कीमत पर बेचने का आत्मविश्वास मिला है।