आजकल नई बाइक्स में सेल्फ स्टार्ट का ही ऑप्शन क्यों देती है कंपनियां, जाने बाइक से क्यों हटाया गया किक सिस्टम

आज के युग में जहां समय की कमी हर किसी के जीवन का एक बड़ा हिस्सा है, टू व्हीलर्स ने हमारे दैनिक जीवन को न केवल सरल बना दिया है बल्कि आवागमन को भी अधिक सुविधाजनक बना दिया है।
 

आज के युग में जहां समय की कमी हर किसी के जीवन का एक बड़ा हिस्सा है, टू व्हीलर्स ने हमारे दैनिक जीवन को न केवल सरल बना दिया है बल्कि आवागमन को भी अधिक सुविधाजनक बना दिया है। चाहे वह बाजार की छोटी-मोटी खरीदारी हो ऑफिस के लिए निकलना हो या फिर शिक्षा के लिए स्कूल और कॉलेज जाना हो टू व्हीलर्स हर घर की जरूरत बन चुके हैं। इसी कारण वाहन निर्माता कंपनियां नए-नए फीचर्स के साथ बाजार में वाहन पेश करती रहती हैं।

सेल्फ स्टार्ट का आविष्कार और किक स्टार्ट का अंत 

पिछले कुछ वर्षों में बाइक और स्कूटरों में सेल्फ स्टार्ट की सुविधा ने धीरे-धीरे किक स्टार्ट को पीछे छोड़ दिया है। प्रीमियम श्रेणी की बाइक्स जैसे कि बजाज पल्सर, केटीएम, यामाहा R15, और रॉयल एनफील्ड क्लासिक में अब किक स्टार्ट का ऑप्शन नहीं मिलता। जहां पहले सेल्फ स्टार्ट खराब हो जाने पर किक स्टार्ट से वाहन को चालू किया जा सकता था वहीं अब इस ऑप्शन को कंपनियों ने हटा दिया है। लेकिन इसके पीछे कारण क्या है?

किक से बाइक स्टार्ट

पहले के जमाने मेंन बाइक स्टार्ट करने का मतलब होता था किक मारकर इंजन को जीवन देना। इस प्रक्रिया में मैकेनिकल तंत्र के जरिए स्पार्क और क्रैंक की मदद से इंजन स्टार्ट होता था और प्रेशर के जरिए कार्बोरेटर के माध्यम से इंजन तक ईंधन पहुंचता था। इस प्रक्रिया में इंडिकेटर और लाइट्स भी इंजन के जरिए ही चलती थीं।

आधुनिक तकनीकी में किक स्टार्ट का अभाव

आज के आधुनिक टू व्हीलर्स में फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम शामिल हो गया है जिसमें टैंक से इंजन तक ईंधन पहुंचाने के लिए एक मोटर लगी होती है जो बैटरी से चलती है। अगर बैटरी पूरी तरह से खत्म हो जाए तो ईंधन इंजन तक नहीं पहुँच पाता और किक से भी बाइक स्टार्ट नहीं होती। इसके अलावा आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ सेल्फ स्टार्ट की दक्षता में सुधार हुआ है और बैटरी लाइफ भी बढ़ी है जिससे किक स्टार्ट की आवश्यकता कम हो गई है।