भारत के इस गांव में चप्पल-जूते नहीं पहनते लोग, वजह आपको चौंका देगी

भारत में कई सांस्कृतिक प्रथाएं और रीति-रिवाज हैं जो अक्सर हमें आश्चर्यचकित कर देते हैं. तमिलनाडु से 450 किलोमीटर दूर स्थित अंडमान गांव (Andaman village) एक ऐसी ही अनोखी परंपरा का पालन करता है
 

no shoes slippers in indian village: भारत में कई सांस्कृतिक प्रथाएं और रीति-रिवाज हैं, जो अक्सर हमें आश्चर्यचकित कर देते हैं. तमिलनाडु से 450 किलोमीटर दूर स्थित अंडमान गांव (Andaman village) एक ऐसी ही अनोखी परंपरा का पालन करता है जहां गांववाले कभी भी जूते-चप्पल नहीं पहनते. चाहे वे घर के अंदर हों या बाहर उनके पैर हमेशा नंगे ही रहते हैं.

गांव के अंदर चप्पल पहनने की मनाही

2019 की एक रिपोर्ट (BBC report) के मुताबिक अंडमान गांव की यह परंपरा अनोखी है. यहां के निवासी चाहे वे बच्चे हों या बुजुर्ग, कोई भी गांव की सीमा के अंदर जूते-चप्पल नहीं पहनता. गर्मियों के दिनों में भले ही जमीन तपती हो लोग अपने पैरों की सुरक्षा के लिए चप्पल उठाकर ले जाते हैं लेकिन पहनते नहीं हैं.

धार्मिक आस्था और परंपरा

गांव वालों की इस प्रथा के पीछे धार्मिक आस्था (Religious faith) है. वे मानते हैं कि गांव की रक्षा देवी मुथ्यालम्मा करती हैं. जैसे लोग मंदिर में जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाते उसी तरह वे इस गांव को भी मंदिर की तरह सम्मान देते हैं. इस परंपरा को निभाना उनकी आस्था का हिस्सा है जिसे वे गर्व से अपनाते हैं.

सामाजिक स्वीकृति और अतिथि सत्कार

जब भी गांव में कोई बाहरी व्यक्ति आता है उसे इस परंपरा के बारे में बताया जाता है. गांववाले उससे उम्मीद करते हैं कि वह इस परंपरा का सम्मान करेगा. हालांकि अगर कोई इसे नहीं मानता तो उसे जबरदस्ती नहीं की जाती है. यह उनकी सामाजिक महत्व (Social acceptance) का प्रतीक है.

परंपरा का इतिहास और विकास

पहले के समय में यह मान्यता थी कि अगर गांव में कोई इस नियम को नहीं मानेगा, तो वहां एक रहस्यमयी बीमारी फैल जाएगी. हालांकि अब इस तरह की मान्यताएं कम हो गई हैं और लोग अधिक उदार हो गए हैं. फिर भी यह परंपरा आज भी गांव के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है और उनकी सामाजिक एकता को दर्शाती है.

उत्सव और सांस्कृतिक प्रोग्राम

हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में गांव में देवी मुथ्यालम्मा की पूजा के लिए एक विशेष त्योहार (Festival celebration) का आयोजन किया जाता है. यह त्योहार तीन दिनों तक चलता है और इस दौरान गांव का हर व्यक्ति इसमें भाग लेता है. इस उत्सव के दौरान विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और गांव की एकता और संस्कृति को मजबूत किया जाता है.