बिहार के इस गांव में प्याज और लहसुन खाने पर लगा है बैन, गलती से खा लिया तो होने लगता है कुछ ऐसा

भारतीय समाज में खाने के प्रति विविध मान्यताएं हैं जो न केवल व्यक्ति की आहार संबंधी पसंद को प्रभावित करती हैं बल्कि कई बार इन मान्यताओं के पीछे गहरी सामाजिक और धार्मिक वजहें भी होती हैं। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की दो मुख्य श्रेणियां हैं जिनमें अपनी-अपनी पसंद के अनुसार लोग भोजन करते हैं।

 

भारतीय समाज में खाने के प्रति विविध मान्यताएं हैं जो न केवल व्यक्ति की आहार संबंधी पसंद को प्रभावित करती हैं बल्कि कई बार इन मान्यताओं के पीछे गहरी सामाजिक और धार्मिक वजहें भी होती हैं। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की दो मुख्य श्रेणियां हैं जिनमें अपनी-अपनी पसंद के अनुसार लोग भोजन करते हैं।

शाकाहार में भी विभिन्नताएं

शाकाहारी होने के नाते भी कई लोग प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करते हैं। इनका मानना है कि प्याज और लहसुन में तामसिक गुण होते हैं, जो शारीरिक और मानसिक शांति को प्रभावित कर सकते हैं। यह विचार विशेषकर उन धार्मिक समुदायों में प्रचलित है जो सात्विक भोजन को प्राथमिकता देते हैं।

बिहार का अनोखा गांव

बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित त्रिलोकी बिगहा गांव एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। यहां के निवासी प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करते हैं। गांव में प्याज और लहसुन की खरीद-फरोख्त भी निषेध है, और यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है।

प्याज-लहसुन रोक लगने के पीछे की परंपरा के पीछे की वजह

स्थानीय निवासियों का मानना है कि गांव में भगवान विष्णु के मंदिर के प्रभाव के कारण और वैदिक मान्यताओं के अनुसार प्याज और लहसुन का सेवन नहीं किया जाता। यह भी कहा जाता है कि जिन्होंने भी प्याज और लहसुन का सेवन किया, उनके साथ कुछ न कुछ अशुभ घटित हुआ।

समुदाय का सामूहिक निर्णय और इसके असर 

इस अनूठी परंपरा को निभाने के लिए गांव के लोगों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया है और वे इसका सख्ती से पालन करते हैं। यह नियम उन्हें अपनी पारंपरिक आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुरूप रहने में मदद करता है। इस प्रकार, त्रिलोकी बिगहा गांव न केवल अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि कैसे एक समुदाय अपनी मान्यताओं और परंपराओं को सदियों तक संजो कर रख सकता है।