मार्केट में 20 रुपए बिकने वाली पानी की बोतल की असली क़ीमत क्या होती है, क़ीमत सुनकर शायद ही होगा आपको विश्वास

पानी और बोतलबंद पानी में पहला और सबसे बड़ा फर्क है बोतल का! यानी पानी की बोतल को आप सुरक्षित मानते हैं इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि इसे सुरक्षित मानने की आप कीमत चुकाते हैं।
 

पानी और बोतलबंद पानी में पहला और सबसे बड़ा फर्क है बोतल का! यानी पानी की बोतल को आप सुरक्षित मानते हैं इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि इसे सुरक्षित मानने की आप कीमत चुकाते हैं।

देश में बोतलबंद पानी की मांग लगातार बढ़ रही है। इसी के साथ मिलावट भी बढ़ रही है। सबसे अहम ये कि मुफ्त में मिल सकने वाले पीने के पानी की हम बड़ी कीमत चुका रहे हैं।

एक लीटर पानी की लागत

अलग-अलग पानी के ब्रांड्स की कीमत अलग-अलग होती है। हालांकि देश में एक लीटर बोतलबंद पानी अमूमन 20 रुपए में मिलता है। ये नल के पानी से लगभग 10 हजार गुना ज्यादा महंगा होता है।

‘द अटलांटिक’ के बिजनेस एडिटर और अर्थशास्त्री डेरेक थॉम्पसन के अनुसार आधा लीटर बोतलबंद पानी की जो कीमत हम चुकाते हैं, वो दिनभर के घरेलू काम जैसे खाना पकाने, बर्तन धोने और नहाने में लगने वाला पानी जितनी कीमत लेता है, उससे बहुत मंहगा पड़ता है। आखिर कैसे इतना महंगा हो जाता है पानी?

ये है बोतलबंद पानी का गणित

  • प्लास्टिक की बोतल की कीमत - 80 पैसे (थोक में खरीद पर)
  • पानी की कीमत - 1.2 रुपए प्रति लीटर 
  • पानी को विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजारने की लागत- 3.40 रुपए/बोतल
  • अतिरिक्त व्यय- 1 रुपए
  • कुल लागत- 6 रुपए 40 पैसे

यानी लगभग 7 रुपए के लिए हम 20 या उससे भी ज्यादा रुपए खर्च कर रहे हैं। क्या इतने पैसे चुकाने के बावजूद हम सुरक्षित हैं और हैं तो कितने?

ये कितना शुद्ध 

पर्यावरण पर शोध कर रही ज्यादातर संस्थाओं का मानना है कि पानी का महंगा ब्रांड लेने का उसकी शुद्धता से कम ही लेना-देना है। असल वजह है प्लास्टिक की बोतल और उसपर चिपका हुआ नाम।

साल 2007 में एक सार्वजनिक सभा में PepsiCo के सीईओ ने कह दिया था कि पानी का उनका ब्रांड एक्वाफिना और कुछ नहीं, बल्कि नल का पानी ही है। इसके बाद काफी बवाल भी हुआ था जो वक्त के साथ ठंडा पड़ गया।

भारत में बोतल वाले पानी के कितने निर्माता

हमारे यहां हालात कुछ खास अच्छे नहीं हैं। भारत में बोतलबंद पानी के 5 हजार से भी ज्यादा निर्माता हैं, जिनके पास ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड लाइसेंस है। इसके बावजूद बोतलबंद पानी सुरक्षित नहीं है।

सरकार ने कुछ साल पहले लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि साल 2014-15 में भारत सरकार ने बोतलबंद पानी पर एक सर्वे किया, जिसमें 806 सैंपल लिए गए, जिनमें से आधे से ज्यादा सैंपलों की गुणवत्ता खराब थी। बाजार में कई तरह का बोतलबंद या प्रोसेस्ड पानी मिल रहा है। इन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है।

प्यूरिफाइड पानी

ये नल का पानी होता है जो कई प्रक्रियाओं से गुजारकर शुद्ध किया जाता है। इसमें कार्बन फिल्टरेशन और रिवर्स ऑसमोसिस दोनों ही शामिल हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में ज्यादातर मिनरल्स निकल जाते हैं।

डिस्टिल्ड पानी

इसमें भी ज्यादातर मिनरल्स निकल जाते हैं। छोटे अप्लायंसेस में इस्तेमाल के लिए ये बेहतर होते हैं।

स्प्रिंग वॉटर

कोई भी पानी, चाहे वो ट्रीटेड हो या न हो, स्प्रिंग वॉटर की श्रेणी में आता है। नेचुरल रिर्सोसेज डिफेंस काउंसिल के अनुसार इसमें भी मिनरल्स की कमी और कई दिक्कतें कॉमन हैं।

प्यूरिफाइड और डिस्टिल्ड वॉटर सुनकर भले ही लगे कि पानी का सबसे सेहतमंद और शुद्ध रूप है लेकिन जरूरी नहीं कि ये सच हो।

बढ़ रही है देश की प्यास

पश्चिमी देशों में बोतलबंद पानी की शुरुआत 19वीं सदी में ही हो गई थी, हालांकि भारत में ये 70 के दशक में आया और टूरिज्म बढ़ने के साथ-साथ बढ़ता ही गया। यूरोमॉनिटर के अनुसार आज भारत में 5 हजार से ज्यादा निर्माता हैं, जिनके पास ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड लाइसेंस है।

यहां 2015 में बोतलबंद पानी की इंडस्ट्री की कीमत 12 हजार करोड़ रही और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है।

पानी की एक बोतल डिकम्पोज होने में 400 से 1000 साल लेती है, केवल 20 प्रतिशत बोतलें ही रीसाइकल हो सकती हैं। इन बोतलों को बनाने में जितना पेट्रोलियम लगता है, उतने में एक मिलियन कारों को सालभर के लिए ईंधन दिया जा सकता है।

और भी हैं तरीके

बोतलबंद पानी महंगा भी है और इसकी शुद्धता की भी कोई गारंटी नहीं। ऐसे में कई दूसरे तरीके अपनाए जा सकते हैं। जैसे कई कंपनियां RO पानी देती हैं यानी पानी को शुद्ध बनाकर 20 लीटर पानी एक कैप्सूल में पैक करके देती हैं।

इसकी कीमत 50 से 80 रुपए तक हो सकती है। इस पानी को लेकर उसे उबालकर स्टोर किया जा सकता है। क्लोरीन या फिर फिटकरी डालकर भी पेयजल शुद्ध बनाया जा सकता है। असल में बोतल में भरे पानी और आपके घर के नलों से आते पानी में कोई खास फर्क नहीं।

रॉ मटेरियल, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन के साथ विज्ञापन की कीमत उपभोक्ता से वसूली जाती है। इसके बाद भी पानी में क्रोमियम 6 , आर्सेनिक, लीड और मर्करी जैसी अशुद्धियां मिलती हैं।

बोतलबंद पानी की बढ़ती मांग और पानी की खराब गुणवत्ता के मद्देनजर हालांकि हमारे यहां भी कई स्टैंडर्ड जारी किए गए हैं जैसे फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड रेगुलेशन 2011 के तहत नियम काफी सख्त हैं लेकिन शुद्धता की तब भी कोई गारंटी नहीं।

ऐसे में लगभग सात रुपए की बोतल के लिए 20 या फिर उससे भी ज्यादा कीमत देने की बजाए पारंपरिक तरीके अपनाना ज्यादा बेहतर तरीका हो सकता है।