डिजिटल जमाने में भी ट्रेन ड्राइवर को क्यों दिए जाते है लोहे के छल्ले, जाने इसके पीछे रेलवे की क्या है तकनीक

भारतीय रेलवे की यात्रा आधुनिकता की ओर अग्रसर है। इसके बावजूद रेलवे प्रणाली में अभी भी कई पुरानी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है जिनमें से एक है टोकन एक्सचेंज सिस्टम।
 

भारतीय रेलवे की यात्रा आधुनिकता की ओर अग्रसर है। इसके बावजूद रेलवे प्रणाली में अभी भी कई पुरानी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है जिनमें से एक है टोकन एक्सचेंज सिस्टम। यह सिस्टम जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है अब धीरे-धीरे विस्मृति के गर्त में जा रहा है। परंतु इसकी उपस्थिति आज भी कई स्थानों पर महसूस की जा सकती है।

टोकन एक्सचेंज सिस्टम

टोकन एक्सचेंज सिस्टम का प्रयोग ट्रेनों के सुरक्षित संचालन के लिए किया जाता है। यह प्रणाली उस समय की देन है जब रेलवे ट्रैक सर्किट्स का अस्तित्व नहीं था। यह सिस्टम ट्रेनों को बिना किसी विघ्न के उनके गंतव्य तक पहुँचने में मदद करता था।

उस समय रेलवे में सिर्फ एकल और छोटे ट्रैक हुआ करते थे। जिन पर दोनों दिशाओं से आने वाली ट्रेनें चलाई जाती थीं। टोकन एक्सचेंज सिस्टम ने इन ट्रेनों को एक-दूसरे से टकराने से बचाया।

कैसे काम करता है यह सिस्टम

इस सिस्टम में एक लोहे का छल्ला होता है जिसे स्टेशन मास्टर लोको पायलट को सौंपता है। यह छल्ला मिलने का मतलब होता है कि अगले स्टेशन तक रास्ता साफ है और ट्रेन आगे बढ़ सकती है। लोको पायलट अगले स्टेशन पर पहुँच कर इसे जमा कर देता है और आगे की यात्रा के लिए नया टोकन प्राप्त करता है।

नेल बॉल मशीन का महत्व

इस छल्ले में एक लोहे की बॉल होती है जिसे स्टेशन पर लगी 'नेल बॉल मशीन' में डाला जाता है। यह प्रक्रिया हर स्टेशन पर दोहराई जाती है जिससे अगले स्टेशन तक के लिए रास्ता सुनिश्चित किया जा सके। यह सिस्टम रेलवे सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता है।

आधुनिकता की दिशा में बढ़ते कदम

हालांकि अब ज्यादातर स्थानों पर ट्रैक सर्किट्स का उपयोग किया जाता है। टोकन एक्सचेंज सिस्टम का अस्तित्व आज भी कुछ स्थानों पर बना हुआ है। यह प्रणाली रेलवे के इतिहास और उसके विकास की एक झलक प्रदान करती है। भारतीय रेलवे का यह यात्रा पथ आधुनिकता की ओर अग्रसर है। जहाँ नवीन तकनीकें और सिस्टम लगातार अपनाए जा रहे हैं परंतु पुरानी प्रथाओं और परंपराओं की महत्ता अभी भी बरकरार है।