शादी के बाद लड़कियों को क्यों पहनना पड़ता है बिछिया, जाने इससे क्या होते है फायदे

सनातन धर्म में श्रृंगार की परंपराएं सिर्फ आध्यात्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों पर भी आधारित हैं। विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली बिछिया का महत्व इसके स्वास्थ्य लाभों में छिपा है।
 

सनातन धर्म में श्रृंगार की परंपराएं सिर्फ आध्यात्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों पर भी आधारित हैं। विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली बिछिया का महत्व इसके स्वास्थ्य लाभों में छिपा है। चांदी की बिछिया पहनने से महिलाओं के पैरों की कुछ नसें उत्तेजित होती हैं, जो कि सीधे उनके गर्भाशय और हृदय से जुड़ी होती हैं।

इससे प्रजनन क्षमता में सुधार होता है और गर्भधारण में सहायता मिलती है। सनातन धर्म में श्रृंगार की प्रत्येक वस्तु का अपना एक विशेष और गहरा महत्व होता है। जिसे समझना और सहेजना हम सभी का कर्तव्य है। ये परंपराएं हमें न केवल अतीत से जोड़ती हैं बल्कि एक सुखद और समृद्ध भविष्य की ओर भी ले जाती हैं।

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धार्मिक मान्यताएं और बिछिया का स्थान

सनातन धर्म में बिछिया न केवल श्रृंगार का एक अंग है बल्कि इसे वैवाहिक सुख और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बिछिया पहनने से महिला के जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।

साथ ही इसे पति और पत्नी के बीच सद्भाव और प्रेम को बढ़ाने वाला माना जाता है। यह धन की देवी मां लक्ष्मी को भी प्रसन्न करता है, जिससे घर में बरकत रहती है।

रामायण और बिछिया का ऐतिहासिक संबंध

बिछिया का एक गहरा ऐतिहासिक और पौराणिक संबंध भी है। विशेषकर रामायण से। जब रावण ने मां सीता का अपहरण किया था। तो सीता ने अपनी बिछिया को उन स्थानों पर गिरा दिया जहां से रावण उन्हें ले जा रहा था।

यह भगवान श्रीराम को उनकी खोज में मदद करने का एक संकेत था। इस प्रकार बिछिया को सनातन धर्म में एक विशेष और महत्वपूर्ण पहचान प्राप्त है।

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समकालीन महत्व और आधुनिक संदर्भ

आज के युग में जबकि आधुनिकता और परंपराओं के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश की जाती है। बिछिया जैसी परंपराएँ अपना विशेष महत्व रखती हैं। यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करती हैं।

बल्कि युवा पीढ़ियों को भी उनकी जड़ों से जोड़े रखने का काम करती हैं। इस प्रकार बिछिया न सिर्फ एक श्रृंगार है बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी एक महत्वपूर्ण अंग है।