जूतें की डोरी के आगे क्यों लगी होती है ये प्लास्टिक, जाने क्या होता है इसका नाम और काम

अक्सर कहा जाता है कि व्यक्तित्व की पहचान उसके जूतों से होती है। जी हां जूते न केवल हमारी शैली को परिभाषित करते हैं बल्कि हमारी पर्सनैलिटी के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करते हैं।
 

अक्सर कहा जाता है कि व्यक्तित्व की पहचान उसके जूतों से होती है। जी हां जूते न केवल हमारी शैली को परिभाषित करते हैं बल्कि हमारी पर्सनैलिटी के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करते हैं। इस आर्टिकल में हम जूतों की दुनिया और उनके इतिहास के बारे में विस्तार से बताएंगे ।

जूतों का इतिहास

दुनिया भर में जूतों का इतिहास लगभग 7000-8000 ईसा पूर्व का है। यह बताता है कि मानव सभ्यता ने किस प्रकार अपनी आवश्यकताओं और सांस्कृतिक विकास के अनुसार जूतों को अपनाया और विकसित किया। जूते न केवल सुरक्षा का माध्यम थे बल्कि समाज में व्यक्ति की स्थिति को भी दर्शाते थे।

जूतों की विशेषता 

आज, हम देखते हैं कि जूतों के डिजाइन और शैली में कितना विविधता आ गई है। एक ऐसी विशिष्टता जिस पर हम अक्सर ध्यान नहीं देते, वह है जूते के फीते के अंत में लगा प्लास्टिक का टुकड़ा, जिसे 'एग्लेट' कहते हैं। इसकी उपस्थिति जूतों के फीते को आसानी से पिरोने और उनके टिकाऊ बनाए रखने में मदद करती है।

लेस वाले जूतों का उद्भव और विकास

12वीं शताब्दी के आसपास, जूतों में लेस का प्रयोग शुरू हुआ। इसने जूतों को पहनने और उतारने में आसानी प्रदान की, साथ ही व्यक्तिगत आराम और फिटिंग को भी सुनिश्चित किया। यह परिवर्तन जूतों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने उन्हें और भी व्यावहारिक बना दिया।

भारत में जूतों का इतिहास

18वीं सदी तक भारत में जूते पहनना केवल राजा और राजदरबारियों तक सीमित था। यह उनकी सामाजिक स्थिति और प्रतिष्ठा का प्रतीक था। हालांकि, समय के साथ जूते पहनने की प्रथा में लोकतांत्रिकता आई और आम जनता ने भी जूते पहनना शुरू कर दिया। यह बदलाव न केवल फैशन के क्षेत्र में था बल्कि यह सामाजिक समानता की ओर एक कदम भी था।