इस तकनीक से बिना मिट्टी के उगा सकेंगे हरी सब्जियां, आधे से ज़्यादा लोगों को तो ये तकनीक जानकर होगी हैरानी

अब फ्लैट में रहने वाले लोग भी किसान के साथ-साथ साल भर ताजी सब्जियों का स्वाद चख सकेंगे। उन्हें भी मिट्टी की जरूरत नहीं होगी और सब्जियां खुद उगाई जाएंगी। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित खेती...
 

अब फ्लैट में रहने वाले लोग भी किसान के साथ-साथ साल भर ताजी सब्जियों का स्वाद चख सकेंगे। उन्हें भी मिट्टी की जरूरत नहीं होगी और सब्जियां खुद उगाई जाएंगी। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित खेती की एक खास तकनीक से यह सब संभव हो सकेगा।

अब बिहार के बांका जिले के लोग मिट्टी के बिना हरी सब्जियां उगा सकेंगे। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र किसानों और अन्य लोगों को हाइड्रोपोनिक तकनीक से सब्जी की खेती का ज्ञान देगा। इस तकनीक से किसान बिना मिट्टी के भी बेमौसमी सब्जी की खेती घर की छत और बरामदों के फर्श पर कर सकते हैं। 

इस तकनीक में पौधों को पानी से पोषक तत्व दिए जाते है 

इस प्रक्रिया में पानी पौधों को पोषक तत्व देता है। इस तकनीक को अपनाकर गांव से शहर तक के किसान पालक, धनिया, लेट्यूमस, शिमला मिर्च और स्ट्रॉबेरी सहित कई बेमौसमी सब्जियों को छत और फर्श पर उगा सकेंगे। मृदा वैज्ञानिक संजय मंडल ने बताया, हाइड्रोपॉनिक तकनीक से सब्जी की खेती करने के लिए बीज को पहले कोकोपीट के माध्यम से अंकुरित किया जाता है।

इसके बाद इसे हाइड्रोपोनिक उपकरण की पाइप में डाल दिया जाता है। इसमें पानी का प्रवाह होना चाहिए। पौधों में दो या तीन पत्तियां आने के बाद, घुलनशील उर्वरक को पानी में मिलाकर छिड़काव और प्रवाह किया जाता है। पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व मिलने से तेजी से विकास होता है।

कृषि विज्ञान केंद्र में जल्द ही एक हाइड्रोपोनिक यूनिट विकसित की जाएगी, जिसमें सेंसर लगाए जाएंगे, जिससे पौधों की वृद्धि को देखा जा सकेगा। हाइड्रोपोनिक तकनीक से सब्जी की खेती में सफलता मिलने पर जिले के किसान इसे अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। इसके लिए भी उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण मिलेगा। 

हाइड्रोपोनिक तकनीक से तैयार किया जा रहा मवेशियों का हरा चारा 

2017 से ही बांका जिले में हाइड्रोपोनिक तकनीक से मवेशियों का हरा चारा बनाया जा रहा है। 2019 में, कोलकाता विश्वविद्यालय ने कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक डॉ. धमेंद्र कुमार को इस सफलता के लिए सम्मानित भी किया। यहां, खासकर गर्मी में, मवेशियों के लिए हरे चारे की कमी है।

लेकिन इस तकनीक से गेंहूं और मक्का से हर मौसम में घर के फर्श और ट्रे में हरा चारा बनाया जा सकता है। हाइड्रोपोनिक हरा चारा पशुओं को खिलाने से बिटामिन ए की कमी पूरी होती है, दाना कम खपत होता है और पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ती है। इससे बांझपन भी कम हो जाता है। 

इस तकनीक से खेती करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा

बांका कृषि विज्ञान केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डॉ. ब्रजेंदू कुमार ने बताया कि जिले में बिना मिटटी के सब्जियां भी हाइड्रोपोनिक तकनीक से उत्पादित होंगी। कृषि विज्ञान केंद्र इसे जल्द ही देखेगा। यहां के किसानों को इस तकनीक से खेती करने के लिए भी प्रशिक्षण मिलेगा। इस तकनीक से जिले में हर मौसम में मवेशियों के लिए हरा चारा बनाया जा रहा है।