जिन जाति को आरक्षण का लाभ मिल चुका है उन्हे करना चाहिए बाहर, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा बयान
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया, जिसमें कहा गया है कि पिछड़ी जातियों (Backward Classes) के वे लोग, जो आरक्षण (Reservation) के हकदार थे और जिन्होंने इसका लाभ उठाया है, उन्हें अब आरक्षित कैटेगरी से बाहर निकलने की आवश्यकता है। इस निर्णय का उद्देश्य अधिक पिछड़ों (More Backward) के लिए रास्ता बनाना है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय आरक्षण नीति (Reservation Policy) में एक नई दिशा प्रदान कर सकता है, जिससे अधिक पिछड़े वर्गों को सही मायने में लाभ मिल सके। यह समाज में उन वर्गों के उत्थान (Upliftment) की दिशा में एक कदम होगा, जो वास्तव में सहायता के पात्र हैं।
उप-वर्गीकरण की समीक्षा
संविधान पीठ (Constitution Bench) ने इस कानूनी सवाल की समीक्षा शुरू की है कि क्या राज्य सरकार (State Government) को शैक्षणिक संस्थानों (Educational Institutions) और सरकारी नौकरियों (Government Jobs) में प्रवेश और आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) में उप-वर्गीकरण (Sub-Classification) करने का अधिकार है?
पूर्व निर्णयों की समीक्षा
संविधान पीठ ने यह भी कहा कि वह 2004 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की वैधता की समीक्षा करेगी, जिसमें कहा गया था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आगे उप-वर्गीकृत (Further Sub-Classified) करने का अधिकार नहीं है।
न्यायालय का तर्क
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विक्रम नाथ (Justice Vikram Nath) ने कहा, “जिन जातियों को बाहर निकालना चाहिए, वे उस श्रेणी में आगे हैं। उन्हें जनरल (General Category) से मुकाबला करना चाहिए।” इससे स्पष्ट होता है कि जो लोग आरक्षण की अवधारणा को प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें उससे बाहर निकल जाना चाहिए।
उद्देश्य और लक्ष्य
महाधिवक्ता (Advocate General) ने कहा, “यदि वह लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तो जिस उद्देश्य (Purpose) के लिए यह अभ्यास किया गया था वह समाप्त हो जाना चाहिए।” यह दर्शाता है कि आरक्षण नीति का मूल उद्देश्य पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाना (Empower) है, न कि अनंत काल तक इसका लाभ उठाना।
संविधान पीठ का गठन
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice D.Y. Chandrachud) की अध्यक्षता में गठित संविधान पीठ इस मामले में गहन विचार-विमर्श (Deliberation) कर रही है। पीठ में शामिल अन्य न्यायमूर्तियों में न्यायमूर्ति बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र मिश्रा भी शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश का स्पष्टीकरण
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि वह केवल मात्रात्मक डेटा (Quantitative Data) से संबंधित तर्कों में नहीं पड़ेंगे। यह दिखाता है कि न्यायालय मामले की गहराई और इसके सामाजिक प्रभाव (Social Impact) को समझने के लिए प्रतिबद्ध है।