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धरती की एक ऐसी जगह जहां अभी तक कलयुग की नही हुई है एंट्री, चारधाम यात्रा करने वालों के लिए खास है ये जगह

भारतीय संस्कृति में तीर्थों का विशेष महत्व है, जहां आध्यात्मिक शक्तियां और प्राचीन इतिहास का संगम होता है। ऐसा ही एक दिव्य स्थल है नैमिषारण्य, जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित है। यह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त माना जाता है
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भारतीय संस्कृति में तीर्थों का विशेष महत्व है, जहां आध्यात्मिक शक्तियां और प्राचीन इतिहास का संगम होता है। ऐसा ही एक दिव्य स्थल है नैमिषारण्य, जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित है। यह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त माना जाता है और हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थों में से एक है।

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नैमिषारण्य

नैमिषारण्य (Naimisharanya) भारतीय पौराणिक कथाओं में वर्णित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण जैसे अनेक हिन्दू धर्मग्रंथों में मिलता है। इसे तपोभूमि भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीन काल में अनेक ऋषि-मुनियों ने यहां गहन तपस्या की थी।

नैमिषारण्य की आध्यात्मिक महत्वता

नैमिषारण्य को 'तीर्थों में तीर्थ' कहा जाता है, जिसका वर्णन अनेक वेद-पुराणों में मिलता है। यह वही पवित्र स्थल है जहां महापुराणों की रचना हुई और महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी यहां आए थे। इस स्थल पर लव-कुश ने वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का पाठ भी किया था।

नैमिषारण्य के प्रमुख आकर्षण

इस पवित्र स्थल पर अनेक मंदिर और तीर्थ स्थल हैं जैसे चक्रतीर्थ, भूतेश्वरनाथ मंदिर, व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर और पंचप्रयाग। ये स्थल न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी बेहद आकर्षक हैं।

चक्रतीर्थ की अद्भुत कथा

नैमिषारण्य का चक्रतीर्थ एक प्रमुख आकर्षण है, जहां की परिक्रमा और स्नान करने का अपना विशेष महत्व है। इसकी स्थापना की कथा अत्यंत रोचक है जिसमें ब्रह्मा जी द्वारा चक्र के माध्यम से इस पवित्र स्थल की खोज की गई थी।

84 कोस की परिक्रमा

नैमिषारण्य की 84 कोस की परिक्रमा एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो फाल्गुन मास की अमावस्या से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक चलती है। इस यात्रा का अपना अलग महत्व है, जिसे हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था और भक्ति के साथ पूर्ण करते हैं।