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इस जगह सुहागरात के टाइम दूल्हा दुल्हन के कमरे के बाहर सोता है पूरा गांव, सुबह होते ही करते है ये बेशर्मी वाला काम

यह सच है कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जहाँ प्रगति और विकास की गाथाएँ अपने चरम पर हैं। फिर भी हमारे समाज के कुछ हिस्सों में अभी भी प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, जो कि समय के साथ पुराने पड़ चुके हैं।
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यह सच है कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जहाँ प्रगति और विकास की गाथाएँ अपने चरम पर हैं। फिर भी हमारे समाज के कुछ हिस्सों में अभी भी प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, जो कि समय के साथ पुराने पड़ चुके हैं। इन्हीं में से एक है महिलाओं की पवित्रता की परीक्षा जो न केवल उनकी गरिमा को आहत करती है।

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बल्कि उनके अधिकारों का हनन भी करती है। आज के युग में जब हम टेक्नोलॉजी और विज्ञान में इतनी प्रगति कर रहे हैं। तब यह अत्यंत आवश्यक है कि हम सामाजिक सोच में भी प्रगति करें। महिलाओं को इस तरह की प्रथाओं से मुक्त करना होगा और उन्हें अधिक सम्मान और स्वतंत्रता प्रदान करनी होगी। ताकि वे भी एक सम्मानजनक और स्वतंत्र जीवन जी सकें।

कंजरभाट समुदाय का विवादास्पद रिवाज

महाराष्ट्र के कंजरभाट समुदाय में आज भी नवविवाहिता को अपनी कौमार्यता का प्रमाण देने के लिए एक क्रूर परीक्षा से गुजरना पड़ता है। इस परीक्षा में सफेद चादर पर खून के धब्बे दिखाकर यह साबित करना होता है कि वह कुंवारी है। यह परंपरा न केवल अमानवीय है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पूरी तरह गलत है।

समाज में जागरूकता की कमी

ऐसी प्रथाएँ उस समाज की जागरूकता की कमी को दर्शाती हैं। जहां महिलाएं अभी भी इस तरह के अन्यायपूर्ण व्यवहार का सामना कर रही हैं। इस तरह के रिवाज न केवल महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देते हैं। बल्कि उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से भी गहरा आघात पहुँचाते हैं।

आधुनिक समाधान और सर्जरी का विकल्प

इस समस्या के समाधान के लिए कई महिलाएं हाइमेनोप्लास्टी जैसी सर्जरी का सहारा ले रही हैं। यह सर्जरी उन्हें फिर से कुंवारी दिखाने के लिए की जाती है, जो कि अपने आप में एक चिंताजनक प्रवृत्ति है। इस प्रकार की सर्जरी का खर्च भारत में 15 से 60 हजार के बीच होता है। जबकि विदेशों में यह खर्च और भी अधिक हो सकता है।