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Business Idea: बिहार के लड़के ने मक्का के छिलके से बना दिया तगड़ा बिजनेस, बेकार दिखने वाली चीजों से बनाए जबरदस्त प्रोडक्ट

बिहार जो धान और गेहूं के बाद मक्के की खेती के लिए प्रसिद्ध है अब एक नई उपलब्धि के लिए चर्चा में है। मुजफ्फरपुर के इंजीनियर मोहम्मद नाज़ ओजैर ने मक्के के छिलके से विभिन्न प्रोडक्ट्स बनाने की अनोखी तकनीक...
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made many types of products from maize peel
   

बिहार जो धान और गेहूं के बाद मक्के की खेती के लिए प्रसिद्ध है अब एक नई उपलब्धि के लिए चर्चा में है। मुजफ्फरपुर के इंजीनियर मोहम्मद नाज़ ओजैर ने मक्के के छिलके से विभिन्न प्रोडक्ट्स बनाने की अनोखी तकनीक विकसित की है जिसके लिए उन्हें भारत सरकार से पेटेंट प्रमाणपत्र भी प्राप्त हुआ है।

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मोहम्मद नाज़ ओजैर की इस अनूठी पहल ने न केवल उन्हें गांव में पागल कहे जाने के तानों से उबारा बल्कि एक प्रेरणादायक उद्यमी के रूप में उनकी पहचान स्थापित की। उनकी सफलता उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो कुछ नया करने की चाह रखते हैं।

मोहम्मद नाज़ ओजैर की यह यात्रा दर्शाती है कि कैसे एक व्यक्ति की दृढ़ संकल्प और इनोवेशन की चाह समाज और पर्यावरण दोनों के लिए कुछ सार्थक कर सकती है। उनकी यह पहल न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

गांव से शुरू हुई कहानी

हैदराबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद एक अच्छी नौकरी छोड़कर गांव वापस लौटे नाज़ ओजैर का मानना था कि मक्के के छिलके का उपयोग कर वे कुछ नया और पर्यावरण के लिए उपयोगी बना सकते हैं। उनकी इस सोच ने मक्के के छिलके से उत्पाद बनाने के विचार को जन्म दिया।

कैसे किया पेटेंट प्राप्त 

नाज़ ओजैर को पेटेंट प्राप्त करने में लगभग पांच साल का समय लगा। इस दौरान उन्हें चीन और जापान के वैज्ञानिकों से भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हालांकि उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत ने उन्हें अंततः सफलता दिलाई।

उत्पादों की विविधता

मक्के के छिलके से नाज़ ओजैर ने प्लेट, कटोरी, पत्तल, बैग जैसे कई उपयोगी उत्पाद बनाए हैं। यह उत्पाद न केवल पर्यावरण के लिए हितकारी हैं बल्कि सिंगल यूज प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प भी प्रस्तुत करते हैं।

समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता

नाज़ ओजैर का लक्ष्य अगले दस सालों में सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादों को मक्के के छिलके से बने उत्पादों से रिप्लेस करना है। उनकी यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगी बल्कि किसानों के लिए भी एक नई आय का स्रोत बन सकती है।