इस अनोखी फसल की खेती करके किसान कर सकते है गेंहु और धान से ज्यादा कमाई, जाने कैसे होती है इसकी खेती
अपने गुणों की वजह से मिलेट्स लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं। डाइट में इन्हें शामिल करने से कई लाभ मिलते हैं। इन्हीं में से एक है कुट्टू, जिसमें गेहूं और धान से भी अधिक पोषक तत्व हैं। कुट्टू सेहत के लिए बहुत अच्छा है।
कुट्टू के आटे में विटामिन बी, आयरन, फोलेट, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम, कॉपर, फॉस्फोरस और प्रोटीन होते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर मिलेट्स खाने से कई बीमारियां दूर होती हैं। ऐसे में किसानों को कुट्टू (Buckwheat) की खेती करना फायदेमंद हो सकता है।
पोषण से भरपूर कुट्टू
फल कुट्टू की गिनती करता है। बकव्हीट पौधे से निकलने वाले तिकोने आकार के फल पीसकर आटा बनाया जाता है। व्रत के दौरान इसे खाया जाता है। इसके तने का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है, हरी पत्तियों और फूल का उपयोग ग्लूकोसाइड को बाहर निकालने के लिए दवा बनाने में किया जाता है, बीज का उपयोग सूप, चाय, नूडल, ग्लूटेन फ्री बीयर आदि बनाने में किया जाता है। इसमें गेहूं और धान की तुलना में अधिक पोषण तत्व हैं।
इसे पर्वतीय क्षेत्रों में खेती की जा सकती है। यह ग्लूटेन-मुक्त आहार है, इसलिए सिलिएक रोगियों के लिए बेहतर है। यह फसल हरी खाद के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है। रबी सीजन में देरी से सूखने वाली जमीन में इसका उपयोग किया जाता है।
कुट्टू की किस्में
किसानों को उन्नत कुट्टू किस्मों की खेती करनी चाहिए ताकि वे कम समय में अधिक मुनाफा पा सकें। इसकी उन्नत किस्मों में हिमप्रिया, हिमगिरी, सांगलाबी1, BL7, PR 'B', Himalaya 'B' और Shimla 'B' शामिल हैं। इसकी खेती रूस में व्यापक रूप से होती है। यूनान में भी जंगली है।
बुआई करने का सही समय
कुट्टू एक रबी फसल है। 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक इसकी बुआई कर सकते हैं। कुट्टू की किस्म बीज की मात्रा निर्धारित करती है। स्कूलेन्टम के लिए 75-80 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होगी, लेकिन टाटारीकम के लिए 40–50 किग्रा प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होगी। कुट्टू के बीजों को छिड़काव विधि से बोते हैं और बुआई के बाद हल पाटा चलाकर बीजों को ढकते हैं।
खाद और सिंचाई
आईसीएआर के अनुसार, कुट्टू की फसल में 40:20:20 किग्रा प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश डालने से उत्पादकता बढ़ती है। 5 से 6 सिंचाई की जरूरत है।
खरपतवार और कीट नियंत्रण
800-1000 लीटर पानी में 3.3 लीटर पेन्डीमेथिलीन का घोल बनाकर 30-35 दिनों बाद संकती पत्ती में छिड़कना चाहिए। कुट्टू की फसल में कीटों और रोगों का प्रकोप नहीं हुआ है। इसलिए किसान इसकी खेती में कीटनाशक का बोझ नहीं उठाते।
कटाई और पैदावार
कुट्टू या कुट्टू की फसल एक साथ नहीं पकती। इसलिए, 70 से 80 प्रतिशत पकने पर इसे काट लिया जाता है। कुट्टू की फसल में बीजों के झड़ने की अधिक समस्या भी इसकी दूसरी वजह है। कटाई के बाद फसल का गट्ठर बनाकर सुखाने के बाद गहाई करना चाहिए। ११-१३ क्विंटल प्रति हेक्टेयर कुट्टू की औसत पैदावार होती है।