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Dhaincha Crop: किसानों के लिए वरदान के बराबर है ये फसल, कम खर्चे में बढ़िया कमाई के लिए है बेस्ट

अगर आप भी इस बार आलू की खेती करने की सोच रहे हैं तो आपके लिए यह जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है.
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Dhaincha cultivation: अगर आप भी इस बार आलू की खेती करने की सोच रहे हैं तो आपके लिए यह जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है. आलू की बुवाई के समय कुछ विशेष तकनीकों का इस्तेमाल करके आप न केवल अपनी लागत को कम कर सकते हैं बल्कि उत्पादन में भी दोगुनी बढ़ोतरी ले सकते हैं. यहाँ हम उन तकनीकों का जिक्र करेंगे जिनका इस्तेमाल कर किसानों ने अपने खेतों में उत्पादन को दोगुना किया है.

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फर्रुखाबाद

यूपी का फर्रुखाबाद जिला (Farrukhabad district) आलू उत्पादन के लिए विख्यात है. यहां के किसान इस समय खेतों में ऐसी फसलें बो रहे हैं जो आलू की तैयारी के दौरान हरी खाद (green manure) का काम करती हैं. इस प्रक्रिया से न केवल खाद की लागत बचती है बल्कि खेत की मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ जाती है, जिससे फसल की पैदावार बढ़ती है.

खेती में ढैंचा का महत्व

फर्रुखाबाद के कमालगंज क्षेत्र के एक किसान, कश्मीर सिंह कटियार (Kashmir Singh Katiyar), जो कि आलू की खेती में 50 सालों से सक्रिय हैं, बताते हैं कि वे अपने खेतों में ढैंचा (dhaincha cultivation) की खेती करते हैं. ढैंचा की खेती करने से पहले बरसात के दिनों में ढैंचा के बीजों को बो दिया जाता है, और आलू की बुवाई के समय इसे खेत में मिला दिया जाता है. इससे खेत में हरी खाद तैयार हो जाती है, जो आलू के पौधों के लिए उत्तम पोषण प्रदान करती है.

आलू की खेती में लागत कैसे बचाएं

कश्मीर सिंह बताते हैं कि वह प्रति बीघा 5 किलो ढैंचा बोते हैं, जिसकी लागत मात्र 100 रुपए आती है. इस तकनीक से उन्होंने अपनी खेती की लागत को काफी हद तक कम किया है और उत्पादन को दोगुना कर लिया है. ढैंचा की खेती से खेत में जैविक खाद (organic manure) का निर्माण होता है, जो कि खेती के लिए अत्यंत लाभकारी होता है.

आलू की खेती के लिए नई तकनीकें 

आलू की खेती में नई तकनीकों और ढैंचा के उपयोग से न केवल खेती की लागत कम होती है बल्कि पर्यावरण के लिए भी यह फायदेमंद होता है. इस प्रकार की खेती से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को प्राकृतिक पोषण मिलता है. अत आलू की खेती के लिए ये तकनीकें न केवल लागत को कम करती हैं बल्कि पैदावार में भी वृद्धि करती हैं.