पढ़े लिखे लोग भी नही जानते च्यूइंग गम और बबल गम के बीच अंतर, जाने बबल गम का रंग गुलाबी ही क्यों होता है
आपने भी शायद बचपन में बबल गम खाकर उसे फुलाने का आनंद उठाया होगा। वो गुलाबी रंग की चिकनी गेंद जो मुंह में जाते ही चबाने का एक अलग ही मजा देती थी। आज मार्केट में भले ही बबल गम के अनेक विकल्प उपलब्ध हों परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि बबल गम आखिर गुलाबी रंग का ही क्यों होता है?
आइए इस रोचक प्रश्न के उत्तर की खोज करते हैं और बबल गम के अविष्कार की कहानी जानते हैं। बबल गम का अविष्कार और उसके गुलाबी रंग की कहानी ने दुनियाभर के लोगों को न केवल एक नई प्रकार की मिठास और मजा प्रदान किया।
बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे एक साधारण सी गलती या संयोग एक नवीन और सफल उत्पाद की नींव बन सकती है। बबल गम का यह सफर नवाचार और सृजनशीलता की एक अद्भुत मिसाल है।
च्यूइंगम और बबल गम मे अंतर
अक्सर लोग च्यूइंगम और बबल गम को एक समान समझ लेते हैं लेकिन इन दोनों में महीन अंतर होता है। बबल गम खास तौर पर उसे फुलाने के लिए बनाई गई है जबकि च्यूइंगम का मुख्य उद्देश्य केवल चबाना होता है।
बबल गम की अद्भुत खोज
बबल गम का आविष्कार फ्लेयर कॉर्पोरेशन फिलाडेल्फिया के संस्थापक फ्रैंक एच. फ्लेयर द्वारा किया गया। साल 1906 में उन्होंने पहली बार बबल गम का निर्माण किया लेकिन वास्तविक सफलता उन्हें 1928 में मिली।
उनके एकाउंटेंट वाल्टर डायमर ने एक प्रयोग के दौरान गलती से ऐसा पदार्थ बना दिया जिसे फुलाया जा सकता था और जो चबाने में भी मजेदार था। इस अनोखे उत्पाद का नाम 'डबबल बबल' रखा गया।
पहली बार बिक्री और उसकी सफलता
जब 'डबबल बबल' का पहला बैच 1928 में एक लोकल शॉप पर भेजा गया तो एक ही दिन में सारा स्टॉक बिक गया। इसकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि सेल्समैन को ग्राहकों को बबल फुलाने का तरीका भी सिखाना पड़ा ताकि वे इसे खरीदने के लिए उत्साहित रहें।
गुलाबी रंग का रहस्य
बबल गम के गुलाबी रंग की कहानी भी काफी रोचक है। मूल रूप से डायमर का बबल गम हल्के ग्रे रंग का था जो देखने में आकर्षक नहीं था। उस समय फैक्ट्री में उपलब्ध एकमात्र डाई लाल रंग की थी। जब इस लाल डाई को ग्रे बबल गम में मिलाया गया तो उसका रंग गुलाबी हो गया। और इस प्रकार बबल गम को उसका प्रतिष्ठित गुलाबी रंग मिला।