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इस जगह किसान खेती करने के लिए करते है हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल, वजह जानकर तो आप भी नही कर पाएंगे विश्वास

भारत वर्षों से कृषि प्रधान देश रहा है जहां किसान खेती कर न केवल अपना बल्कि पूरे देश का पेट भरते हैं। आम तौर पर इन किसानों को साधारण संसाधनों के साथ खेती करते देखा गया है लेकिन आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए....
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भारत वर्षों से कृषि प्रधान देश रहा है जहां किसान खेती कर न केवल अपना बल्कि पूरे देश का पेट भरते हैं। आम तौर पर इन किसानों को साधारण संसाधनों के साथ खेती करते देखा गया है लेकिन आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए कुछ किसान नई तकनीकों को अपनाते हुए भी दिखाई देते हैं।

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ऐसी ही एक तकनीक है हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल जो सुनने में भले ही आश्चर्यजनक लगे परंतु यह एक दिलचस्प और नया प्रयोग है। भारतीय किसान न केवल परंपरागत खेती कर रहे हैं।

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बल्कि नयी तकनीक के द्वारा अपनी खेती की प्रक्रियाओं को और भी उन्नत बना रहे हैं। यह हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल न केवल एक अभिनव विचार है बल्कि यह कृषि क्षेत्र में तकनीकी प्रगति का भी एक अच्छा उदाहरण है।

चेरी के पौधों की अनूठी देखभाल

विशेषकर चेरी के पौधों की बात करें तो इनकी देखभाल में बहुत सावधानी की जरूरत होती है। चेरी के पौधे जलवायु के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। यह पौधे उच्च आर्द्रता वाले वातावरण में जल्दी खराब हो सकते हैं खासकर बारिश के दौरान। इसलिए बारिश होने के तुरंत बाद फसलों को सुखाने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग किया जाता है।

हेलीकॉप्टर की भूमिका और कार्यप्रणाली

जब चेरी के पौधे बारिश से गीले हो जाते हैं तो हेलीकॉप्टर की मदद से उन पर जमा अतिरिक्त पानी को हटाया जाता है। हेलीकॉप्टर को फसलों के नजदीक उड़ाना पड़ता है ताकि उसके पंखों से निकलने वाली हवा फसलों पर से पानी को उड़ा सके। यह प्रक्रिया फसलों को जल्दी सुखाने और उन्हें खराब होने से बचाने के लिए की जाती है।

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चेरी की खेती और विविधता

चेरी की खेती दुनिया भर में व्यापक रूप से की जाती है और इसकी मांग भी काफी अधिक है। चेरी को उसकी मिठास और स्वाद के लिए सराहा जाता है। इसे विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में शामिल किया जाता है। भारत में इसकी खेती मुख्यतः उत्तर पूर्वी राज्यों हिमाचल प्रदेश कश्मीर और उत्तराखंड में की जाती है।

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उपयुक्त जलवायु और खेती की स्थितियां

चेरी की खेती के लिए एक ठंडी और शुष्क जलवायु अनिवार्य है। इस फल को पनपने के लिए 7 डिग्री सेंटीग्रेट से कम के तापमान पर लंबे समय तक ठंडक की जरूरत होती है। ऐसी जलवायु भारत में कश्मीर और कुल्लू जैसे पहाड़ी इलाकों में उपलब्ध होती है जहां यह फल बेहतरीन रूप से पैदा होता है।