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छोटे किसानों के लिए किसी गाय से कम नही है इस नस्ल की बकरी, हर रोज देती है इतने लीटर दूध

भारत में छोटे और सीमांत किसानों के बीच बकरी पालन का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण बकरी के दूध और मांस से होने वाली अच्छी कमाई है
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भारत में छोटे और सीमांत किसानों के बीच बकरी पालन का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण बकरी के दूध और मांस से होने वाली अच्छी कमाई है जो किसानों के जीवन स्तर में सुधार ला रही है। केंद्र और राज्य सरकारें भी इसे प्रोत्साहन देने में जुटी हैं और इसके लिए विभिन्न प्रकार की सब्सिडियाँ भी दी जा रही हैं। आज हम एक खास नस्ल 'सानेन नस्ल' के बारे में चर्चा करेंगे जिसे 'दूध की रानी' के नाम से जाना जाता है।

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सानेन नस्ल

'सानेन' नस्ल की बकरी जिसकी उत्पत्ति नीदरलैंड में हुई है अपने ज्यादा दूध उत्पादन के लिए जानी जाती है। यह नस्ल प्रतिदिन 10 लीटर तक दूध दे सकती है जबकि भारतीय देसी भैंस केवल 6 से 8 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। सानेन नस्ल की इस विशेषता के कारण किसानों ने इसे 'सीमांत किसानों की गाय' के रूप में अपनाया है।

सानेन नस्ल की विशेषताएं और इसकी आर्थिक उपयोगिता

सानेन नस्ल की बकरियाँ सफेद रंग की होती हैं, इनके सींग ऊपर की ओर और कान खड़े होते हैं। इन बकरियों के दूध और मांस में प्रोटीन की मात्रा उच्च होती है, जिससे इनका दूध और मांस बाजार में ज्यादा कीमत पर बिकता है। दूध की कीमत 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक और मांस 1000 से 1500 रुपये प्रति किलो तक होती है। इसके अलावा सानेन नस्ल की बकरी के दूध से बना पनीर भी 1000 रुपये प्रति किलो की कीमत से बिकता है और घी की कीमत 3000 रुपये प्रति किलो होती है।

सानेन नस्ल की बकरियों का भारत में प्रचलन और भविष्य

सानेन नस्ल की बकरियों का पालन अब भारत में भी बढ़ रहा है। मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में किसान इस नस्ल की बकरियों को बड़े पैमाने पर पाल रहे हैं। इससे न केवल किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है बल्कि इससे जुड़े अन्य व्यावसायिक अवसर भी बढ़ रहे हैं।