इस अजीबोगरीब कुत्ते की दहाड़ सुनकर बाघ की भी हवा हो जाए टाइट, कांप उठेगा आपका कलेजा
बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले में स्थित वाल्मिकी टाइगर रिजर्व (Valmiki Tiger Reserve) एक ऐसा स्थान है जहां पर्यावरण (Environment) और जैव विविधता (Biodiversity) का अनोखा संगम होता है। यहां के घने जंगलों में विभिन्न दुर्लभ पशु-पक्षी (Rare animals and birds) अपना बसेरा बनाए हुए हैं, जिनमें से एक है ढोल (Dhole)। ढोल, जिसे अक्सर लोग अजीबोगरीब कुत्ते (Strange dogs) के रूप में जानते हैं, वास्तव में एक अनोखी प्रजाति है जो अपनी लंबी टांगों (Long legs) और लोमड़ी जैसी उपस्थिति (Fox-like appearance) के लिए जानी जाती है।
एक खास प्रकार का सामाजिक जानवर
ढोल न केवल अपने दिखावट में अनूठा है, बल्कि इसके सामाजिक व्यवहार (Social behavior) में भी खासियत छिपी हुई है। ये जानवर हमेशा 15 से 20 के झुंड (Pack) में रहते हैं और शिकार (Hunting) करते समय अपनी चतुराई और सामूहिक रणनीति (Collective strategy) का प्रदर्शन करते हैं। यह जानवर भौंकता नहीं है बल्कि एक अनोखी आवाज (Unique sound) निकालता है, जो इसे अन्य कुत्तों से अलग करती है।
जीवनरक्षा की अद्वितीय रणनीति
वाल्मिकी टाइगर रिजर्व में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट (Wildlife expert) अभिषेक का कहना है कि ढोल इतने निडर (Fearless) होते हैं कि वे बाघ (Tiger) और तेंदुए (Leopard) जैसे शिकारियों से भी भिड़ जाते हैं। इनकी ताकत इनकी एकजुटता (Unity) में होती है, जो इन्हें अपने दुश्मनों पर विजय पाने में मदद करती है।
एक खतरनाक शिकारी
ढोल को एशियाटिक वाइल्ड डॉग (Asiatic Wild Dog), इंडियन वाइल्ड डॉग (Indian Wild Dog) और रेड डॉग (Red Dog) के नामों से भी जाना जाता है। ये बहुत कुशल शिकारी (Skilled hunters) होते हैं, जो अपने आकार से दस गुना बड़े जानवरों को मारने में सक्षम होते हैं। छोटे और बड़े झुंड, दोनों ही सांबर (Sambar) और चीतल (Chital) जैसे हिरणों का शिकार करते हैं।
रख रखाव की ओर एक कदम
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) द्वारा ढोल को लुप्तप्राय प्रजाति (Endangered species) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनका संरक्षण (Conservation) न केवल इनके अस्तित्व के लिए, बल्कि हमारे पर्यावरण के संतुलन (Environmental balance) को बनाए रखने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पूरे बिहार में ये केवल वाल्मिकी टाइगर रिजर्व के घने जंगलों में ही पाए जाते हैं, जो इनके संरक्षण के प्रयासों को और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।