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यहाँ नई दुल्हन हाथ की बजाय पैर से पकड़ाती है खाने की थाली, फिर पति करता है ऐसा काम की आपको भी नही होगा यकीन

"कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी" (Diversity) की कहावत भारत (India) की विविधता को दर्शाती है, जहां थारू जनजाति (Tharu Tribe) अपनी अनूठी परंपराओं (Unique Traditions) के साथ एक विशेष पहचान रखती है।
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weired tibal rituals
   

"कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी" (Diversity) की कहावत भारत (India) की विविधता को दर्शाती है, जहां थारू जनजाति (Tharu Tribe) अपनी अनूठी परंपराओं (Unique Traditions) के साथ एक विशेष पहचान रखती है।

इस जनजाति के रीति-रिवाज (Customs) और शादी-ब्याह (Marriage Traditions) में अपनी विशिष्टता के कारण वे सांस्कृतिक विविधता (Cultural Diversity) के एक जीवंत उदाहरण हैं। थारू जनजाति की संस्कृति और परंपराएं भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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इस समुदाय की अनूठी परंपराएं और सांस्कृतिक पहचान न केवल उनकी अपनी विशिष्टता को दर्शाती हैं, बल्कि भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति (Diverse Culture) को भी समृद्ध करती हैं।

मातृसत्तात्मक समाज की एक झलक

थारू जनजाति में महिलाओं (Women) को पुरुषों के मुकाबले उच्च दर्जा (Higher Status) प्राप्त है, जो मातृसत्तात्मक समाज (Matriarchal Society) की विशेषता है। एक अनोखी रस्म (Unique Ritual) में, नवविवाहित दुल्हन पहली बार रसोई में खाना बनाती है और पति को पैर से खिसकाकर थाली देती है, जिससे इस समुदाय में महिलाओं के सम्मान और प्रभुत्व को दर्शाया जाता है।

थारू जनजाति का भौगोलिक विस्तार

थारू समुदाय (Tharu Community) के लोग भारत के विभिन्न राज्यों जैसे कि उत्तराखंड (Uttarakhand), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), बिहार (Bihar) और पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) में निवास करते हैं। इनका निवास स्थान पहाड़ों, नदियों और जंगलों से घिरे इलाकों में है, जहां वे अपनी परंपरागत जीवनशैली (Traditional Lifestyle) का पालन करते हैं।

विवाह संस्कार में अनूठी परंपराएं

थारू जनजाति की शादियों में अनेक अजीबोगरीब रस्में (Unique Ceremonies) देखने को मिलती हैं, जैसे कि "अपना पराया" और "बात कट्टी", जो इस समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) को दर्शाती हैं। इन रस्मों के माध्यम से समुदाय की अपनी अलग पहचान और गहरी जड़ें उजागर होती हैं।

पुरुषों का रसोई में जाने की इजाजत नहीं 

थारू समुदाय में पुरुषों को रसोई घर में प्रवेश की अनुमति नहीं होती (Men's Entry Forbidden in Kitchen), जो इस समुदाय की मातृसत्तात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है। यहां तक कि शादी की कुछ रस्में भी इसी विचारधारा को प्रतिबिंबित करती हैं।

थारू पहनावा और सांस्कृतिक पहचान

थारू पुरुष और महिलाओं का पारंपरिक पहनावा (Traditional Attire) उनकी सांस्कृतिक पहचान (Cultural Identity) को दर्शाता है। महिलाएं लहंगा और चुनरी पहनती हैं, जबकि पुरुष धोती-कुर्ता और गमछा पहनते हैं, जो उनकी सादगी और पारंपरिक मूल्यों को दिखाता है।