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कैसे एक शिक्षक हो गया अकबर के नवरत्न में शामिल, जिसकी मौत के बाद खूब रोया था मुगल बादशाह

दो पुस्तकें, आइन-ए-अकबरी और अकबरनामा, मुगलकालीन इतिहास, खासकर अकबर के बारे में जानने के लिए सर्वोत्तम हैं। यह लेख अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने लिखा था।
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nine gems abul fazal
   

दो पुस्तकें, आइन-ए-अकबरी और अकबरनामा, मुगलकालीन इतिहास, खासकर अकबर के बारे में जानने के लिए सर्वोत्तम हैं। यह लेख अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने लिखा था। बादशाह ने बहुत रोया जब अकबर के प्यारे अबुल फजल को उनके बेटे जहांगीर ने मार डाला। 14 जनवरी 1551 को मुगलों की राजधानी आगरा में अबुल फजल का जन्म हुआ।

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महान बुद्धिमान अबुल फजल का पूरा नाम अबुल फजल इब्न मुबारक था, वह बचपन से ही पिता शेख मुबारक से बेहतरीन शिक्षा प्राप्त कर चुका था। अबुल फजल ने सिर्फ 15 साल की उम्र में इस्लामिक और दर्शन शास्त्र की पढ़ाई पूरी की।

कम उम्र में ही बन गए थे शिक्षक

जब अबुल फजल 20 वर्ष के थे, तब वे शिक्षक बन गए। उसी समय उन्हें इस्फहानी की एक पुस्तक मिली। उस किताब का आधा से अधिक भाग दीमक से मर गया था। लेकिन अबुल फजल ने उसे पढ़ा और गायब भाग पर कागज जोड़कर हर वाक्य अपनी ओर से लिखा।

बाद में उन्हें दूसरी प्रति मिली, तो उन्हें पता चला कि अबुल फजल ने जो लिखा था, वह बहुत मजबूत था। सिर्फ कुछ शब्द बदल गए थे, लेकिन मूल बात थी।

प्रतिभा के कारण नवरत्नों में शामिल हुए

अकबर के शासनकाल में हर विषय के विद्वान उसके दरबार में रहते थे। माना जाता है कि पटना जीतने के बाद अकबर अजमेर गए, जहां उन्होंने अबुल फजल से मुलाकात की। बादशाह अकबर ने उनकी प्रतिभा को लोहा मानकर उन्हें अपना दरबारी बनाया। अपनी प्रतिभा के कारण वह अकबर के करीब होते गए और नवरत्नों में शामिल हो गए।

संगत से उदार हुए बादशाह

1575 में अकबर ने अबुल फजल को अपने नवरत्नों में शामिल किया। बादशाह अकबर को उनकी अनुकूलता ने उदार बनाया। बादशाह के दरबार में होने वाली हर घटना भी अबुल फजल ने लिखना शुरू कर दी। मुगल काल की अन्य घटनाओं का भी रिकॉर्ड बनाने लगे।

बाद में अकबर के दरबार और जीवन की घटनाओं को एकत्र करके अकबरनामा लिखी। वहीं अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में मुगल सभ्यता और समाज का चित्रण किया।

युद्ध कला में भी माहिर थे अबुल फजल

अबुल फजल के पास सिर्फ बौद्धिक क्षमता नहीं थी, बल्कि उनका अच्छा युद्धकौशल भी था। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि शहजादा मुराद बख्श अहमदनगर की लड़ाई हार गई। बादशाह अकबर का बलिष्ठ सैनिक अबुल फजल हुआ।

जब अबुल फजल ने आसफ खां, मिर्जा कोका और शेख फरीज के साथ आसिरगढ़ के किले पर अकबर का झंडा फहराने की कोशिश की, तो वह सफल भी हुआ।

प्रतिभा ही बन गई दुश्मनों की आंख का कांटा

अबुल फजल की प्रतिभा ही उनकी दुश्मन बनती जा रही थी। वह अकबर की ओर बढ़ते जा रहे थे, लेकिन दूसरे दरबारियों और यहां तक कि शहजादा सलीम यानी जहांगीर की दृष्टि उन पर पड़ने लगी।

बादशाह अबुल फजल पर अकबर और जहांगीर का विवाद बढ़ा। जहांगीर अबुल फजल इससे चिढ़ गया। जहांगीर उसके आसपास फूटी आंख नहीं देखना चाहता।

जहांगीर ने हत्या की योजना बनाई

जहांगीर का साहस देखकर अकबर ने अबुल फजल को अपने पास आने को कहा। इसके बाद जहांगीर ने वीर सिंह बुंदेला से संपर्क किया और अबुल फजल को मार डालने के लिए तैयार हो गया। अबुल फजल भी इस साजिश से परिचित था। साथ ही, उनके चाहने वालों ने अबुल फजल से कहा कि वह अपना रास्ता बदल दें।

बादशाह से किसी दूसरे तरीके से संपर्क करें, लेकिन साहसी अबुल फजल ने इसे नहीं माने। 12 अगस्त 1602 को, वीर सिंह बुंदेला ने अबुल फजल को घेर लिया। Абबुल फजल के मित्रों और प्रशंसकों ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए।

अकबर ने महल में अपने आप को कैद कर लिया था

अकबर ने जहांगीर की इस करतूत को जानकर रोने लगा। इतिहास बताता है कि अकबर ने इस घिनौनी कार्रवाई के लिए अपने बेटे को कभी क्षमा नहीं की थी। तब उन्होंने यहां तक कहा कि सलीम सत्ता चाहता तो मुझे मांग लेता या अबुल फजल की जगह मुझे मार देता। अकबर ने अबुल फजल की मौत की कसक ताउम्र रखी और खुद को महल में कैद कर लिया।