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भारत में संपत्ति विवाद सामान्य बात है। खासकर जब बात पैतृक संपत्ति के बंटवारे की आती है। यह विवाद अक्सर बड़े पैमाने पर गंभीर संघर्ष में बदल जाते हैं। जिससे परिवारों में दूरियां बढ़ जाती हैं और कभी-कभी यह मारपीट और हत्या तक पहुंच जाती है। हालांकि कानूनी उपायों के द्वारा इन मामलों का समाधान संभव है।
जिससे विवादों को निष्पक्ष तरीके से हल किया जा सकता है। जब संपत्ति के विवाद सामने आते हैं, तो कानूनी मार्ग अपनाना न केवल संभव है। बल्कि अनिवार्य भी होता है ताकि न्याय सुनिश्चित हो सके और सभी संबंधित पक्षों के बीच निष्पक्ष और समान अधिकारों का पालन किया जा सके।
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महिलाओं के अधिकार और संपत्ति में भेदभाव
विशेष रूप से महिलाओं के साथ संपत्ति के बंटवारे में होने वाला भेदभाव एक गंभीर समस्या है। भारतीय समाज में अक्सर पैतृक संपत्ति के अधिकारों को पुरुषों तक ही सीमित रखा गया है।
हालांकि उत्तराधिकार कानूनों के तहत महिलाओं के पास भी समान अधिकार हैं। यदि परिवार के पुरुष सदस्य संपत्ति में हिस्सेदारी देने से इनकार करते हैं, तो महिलाएं कानूनी कार्रवाई कर सकती हैं।
पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी
पैतृक संपत्ति जिसे हमारे पूर्वजों ने चार पीढ़ियों तक छोड़ा है। वह सभी वंशजों को जन्मजात अधिकार प्रदान करती है। यदि संपत्ति का विभाजन पहले ही हो चुका है और उसे बेच दिया गया है, तो भी बेटियों को उसमें समान अधिकार प्राप्त होते हैं।
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कानूनी उपाय
यदि कोई महिला पैतृक संपत्ति में अपना हक मांगती है और उसे इनकार किया जाता है, तो उसे सबसे पहले कानूनी नोटिस द्वारा अपना दावा पेश करना चाहिए। यदि बात नहीं बनती, तो सिविल कोर्ट में केस दायर करना अगला कदम हो सकता है। इस प्रक्रिया में संपत्ति को बेचने से रोकने के लिए अदालत से स्थगनादेश भी मांगा जा सकता है।