लाइट से ट्रेन दौड़ते है तो पटरियों में क्यों नही आता करंट, जाने इसके पीछे की साइंस
रेलवे देश में हर दिन 2.5 करोड़ से अधिक लोगों की यात्रा करता है। बिजली, डीजल और सीएनजी से चलने वाली ट्रेन हैं। 25 हजार वोल्ट बिजली एक ट्रेन को चलाने के लिए चाहिए। ऐसे प्रश्न आज कई लोगों के मन में उठते हैं।
रेलवे देश में हर दिन 2.5 करोड़ से अधिक लोगों की यात्रा करता है। बिजली, डीजल और सीएनजी से चलने वाली ट्रेन हैं। 25 हजार वोल्ट बिजली एक ट्रेन को चलाने के लिए चाहिए। ऐसे प्रश्न आज कई लोगों के मन में उठते हैं।
कि 25 हजार वोल्ट की बिजली होने के बावजूद ट्रेन की पटरियां लोहे की क्यों नहीं होती? इसके बावजूद, पटरी छूने पर करंट नहीं बजता। तो आइये इसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें।
इसलिए ट्रैक में करंट नहीं फैलता
भारतीय रेलवे की पटरियों में बिजली का बहुत कम प्रवाह होता है। Quora पर भारतीय रेलवे के मुख्य यांत्रिक इंजीनियर अनिमेष कुमार सिन्हा ने कहा कि रेलवे ट्रैक के पूरे हिस्से में बिजली नहीं बहती है।
लाइन के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से में ही करंट प्रवाहित होता है, उन्होंने बताया। यह बहुत कम वोल्टेज का प्रवाह सिग्नलों और रेलवे स्टेशनों के आसपास भी होता है। यही कारण है कि ट्रैक को छूने पर भी करंट का झटका नहीं महसूस होता।
बिजली प्रवाहित होने के लिए हमेशा सबसे छोटा मार्ग चुनती है
भारतीय रेलवे पटरियां बिछाते समय अर्थिंग उपकरण भी लगाता है, जिससे पटरियों तक पहुंचने वाली बिजली रोक दी जाती है। रेलवे ट्रैक में बिजली का ठहराव होने से किसी को कोई नुकसान नहीं होता।
दरअसल, इनमें से हर एक में विज्ञान का एक नियम लागू होता है। विद्युत प्रवाह हमेशा सबसे छोटे रास्ते से होता है। ऐसी स्थिति में बिजली हमेशा पटरियों के किनारे कम दूरी पर स्थापित अर्थिंग उपकरणों से ग्राउंडेड होती है।