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रुई के तो आसपास भी नही गये फिर नाभि में कैसे आ जाती है रुई, अगर नही पता तो जान लो इसकी वजह

अक्सर हमारे मन में ऐसे कई सवाल उठते हैं जिनके जवाब हमें जानने की उत्सुकता तो होती है लेकिन हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं।
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रुई के तो आसपास भी नही गये फिर नाभि में कैसे आ जाती है रुई, अगर नही पता तो जान लो इसकी वजह
   

अक्सर हमारे मन में ऐसे कई सवाल उठते हैं जिनके जवाब हमें जानने की उत्सुकता तो होती है लेकिन हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं। ऐसा ही एक सवाल है जो बहुतों के मन में उठता है—नाभि में रूई कहां से आती है? इस आश्चर्यजनक परन्तु सामान्य प्रश्न का वैज्ञानिक उत्तर भी है।आइए जानते है.. 

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नाभि में रूई

नाभि से रूई निकलने की घटना को वैज्ञानिक भाषा में 'नाभि फ्लफ' कहा जाता है। इस अद्भुत घटना पर शोध करने वाले वैज्ञानिक डॉ. कार्ल क्रूसजेलनिकी को उनके अनोखे शोध के लिए एलजी नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया जो कि उन खोजों के लिए दिया जाता है जो पहले हंसी खिंचती हैं लेकिन बाद में गंभीर चिंतन को प्रेरित करती हैं।

डॉ. कार्ल का शोध और प्रयोग

डॉ. कार्ल, जिन्हें प्यार से लोग डॉक्टर कार्ल भी बुलाते हैं, ने सिडनी यूनिवर्सिटी में अपनी रिसर्च के दौरान इस प्रश्न का उत्तर खोजने की ठानी। उन्होंने विभिन्न व्यक्तियों की नाभियों से निकलने वाली रूई को एकत्रित किया और पाया कि नाभि के आसपास के बाल रेशमी कपड़े के टुकड़ों को नाभि की ओर खींचते हैं जो वहां जमा हो जाते हैं।

नाभि फ्लफ के बारे में वैज्ञानिको का कहना 

डॉ. कार्ल के अनुसार नाभि में बालों की उपस्थिति और उनका घनत्व इस बात का निर्धारण करते हैं कि नाभि फ्लफ कितनी मात्रा में जमा होगा। उनके शोध से यह भी पता चला कि यह प्रक्रिया उन लोगों में अधिक सामान्य है जिनका हाल ही में वजन बढ़ा है या जो अधेड़ उम्र के हैं।

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अन्य वैज्ञानिकों का योगदान

जॉर्ज स्टेनहाउजर एक और वैज्ञानिक जिसने इस विषय पर शोध किया ने तीन साल तक रोजाना अपनी नाभि से रूई एकत्र की। उनका शोध इस बात पर केंद्रित था कि नाभि में जमा होने वाली रूई कपड़ों के रेशों, मृत त्वचा और पसीने से मिलकर बनती है। उन्होंने पाया कि नाभि फ्लफ का रंग उस दिन पहने गए कपड़ों के रंग से मेल खाता है।