डीएपी की किल्लत से जूझ रहे किसानों के लिए इफको की बड़ी तैयारी, निकाला ये नया समाधान
नागौर जिले में इस वर्ष रबी की फसलों की बुवाई में बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण डायम्मोनियम फास्फेट (डीएपी) की मांग में भी जबरदस्त उछाल आया है. इस वर्ष की अच्छी बारिश ने बिना पानी के इलाकों में भी खेती के नए अवसर मिले हैं जिससे डीएपी की खपत में लगभग 30% की बढ़ोतरी हुई है.
लक्ष्य से अधिक हुई बुवाई
कृषि विभाग के अनुसार इस साल नागौर जिले में लगभग 2 लाख 68 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की फसलों की बुवाई की गई है जो कि लक्ष्य से 30% अधिक है. इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण इस वर्ष ज्यादा बारिश होना और नई भूमि का खेती के लिए उपयोग में लाना है.
खपत में बढ़ोतरी से उत्पन्न हुई समस्या
इफको के अनुसार हालांकि वे हर वर्ष आवश्यक मात्रा में डीएपी प्राप्त कर रहे हैं लेकिन बढ़ती मांग के कारण इसकी कमी महसूस की जा रही है. इस वर्ष नागौर में डीएपी की जरूरत करीब 50 हजार मैट्रिक टन है जबकि उपलब्धता केवल 35 से 40 हजार मैट्रिक टन के बीच है.
डीएपी की कमी को कैसे दूर किया जाए?
भारत में डीएपी के उत्पादन संयंत्रों का पहले से ही हाई लेवल पर संचालन हो रहा है जिससे अचानक उत्पादन में बढ़ोतरी संभव नहीं है. विदेश से डीएपी का आयात भी एक सीमा तक ही संभव है, क्योंकि वहां भी स्थानीय खपत अधिक है.
नैनो डीएपी से समस्या का समाधान
कृषि विभाग ने किसानों को नैनो डीएपी के उपयोग की सलाह दी है, जिससे उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ भूमि की उर्वरता भी बनी रहे. यदि यह तकनीक सफल रहती है, तो यह डीएपी की कमी को कम कर सकती है.
डीएपी की कमी से जूझते किसान
कई किसानों ने बताया कि उन्हें डीएपी के लिए कई दिनों से परेशानी हो रही है. किसान विकास गोस्वामी और किशोर प्रजापत जैसे किसानों का कहना है कि डीएपी की कमी के कारण उनकी बुवाई में देरी हो रही है, जिससे उनके फसल चक्र पर भी प्रभाव पड़ रहा है.